उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कुछ भाषाओं की गंभीर स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी भाषाओं का संरक्षण हमारी सांस्कृतिक परंपराओं की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भाषा किसी भी संस्कृति की जीवन रेखा है। उन्होंने कहा किजहां भाषा संस्कृति को मजबूत करती है, वहीं संस्कृति समाज को मजबूत बनाती है।
विश्व में हर दो सप्ताह में एक भाषा के विलुप्त होने पर संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए नायडू ने चिंता व्यक्त की कि 196 भारतीय भाषाएं हैं जो इस समय खतरे में हैं। उपराष्ट्रपति ने इस स्थित को पलटने के लिए ठोस कार्रवाई करने का आह्वान किया और आशा व्यक्त की कि सभी भारतीय अपनी भाषाओं को संरक्षित रखने के लिए एकजुट होंगे और आगे बढ़ेंगे।
उपराष्ट्रपति सिंगापुर में एक सांस्कृतिक संगठन श्री समस्क्रुतिका कलासरधि द्वारा आयोजित ‘अंतरजातीय समस्क्रुतिका सम्मेलन-2021’ की पहली वर्षगांठ समारोह को वर्चुअल रूप में संबोधित कर रहे थे।
उपराष्ट्रपति ने प्रवासी भारतीयों को सांस्कृतिक राजदूत बताते हुए भारतीय मूल्यों और रीति-रिवाजों को जीवित रखने के लिए उनकी सराहना की और कहा कि भारत को हमारे प्राचीन मूल्यों के प्रसार में उनकी भूमिका पर गर्व है।
श्री नायडू ने हमारी भाषाओं को संरक्षित रखने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए दोहराया कि प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा स्तर तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। उन्होंने तकनीकी शिक्षा में मातृभाषाओं के उपयोग को धीरे-धीरे बढ़ाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि प्रशासन और न्यायपालिका की भाषा स्थानीय होनी चाहिए ताकि लोगों की पहुंच अधिक हो सके।उन्होंने सभी से अपनी मातृभाषा पर गर्व करने और अपने परिवार के साथ, अपने समुदाय में और अन्य अवसरों पर उस भाषा में बोलने का आग्रह किया।
उपराष्ट्रपति ने बताया कि यूनेस्को के अनुसार संस्कृति की परिभाषा में न केवल कला और साहित्य, बल्कि जीवन शैली, एक साथ रहने के तरीके, मूल्य प्रणालियां और परंपराएं भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति अपने मानवतावादी वैश्विक दृष्टिकोण और प्रकृति के प्रति अपने दृष्टिकोण में अद्वितीय है। उन्होंने बताया कि प्रकृति का संरक्षण भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है, यह पेड़ों, नदियों, वन्यजीवों और मवेशियों की हमारी पूजा से स्पष्ट है। उन्होंने कहा किइसी तरह भारतीय मूल्य दुनिया को एक परिवार के रूप में देखते हैं और हमें ‘शेयर और केयर’ के अपने प्राचीन दर्शन को नहीं भूलना चाहिए।
श्री नायडू ने कहा कि कोविड-19से लोगों में मानसिक तनाव बढ़ा है और अध्यात्मवाद का अभ्यास करने से उनके तनाव को दूर किया जा सकता है। उन्होंने धार्मिक और आध्यात्मिक नेताओं द्वारा लोगों तक पहुंचने और उन्हें इस तनाव को दूर करने में मदद करने की अपील की।
भारत को अनेक भाषाओं और संस्कृतियों का घर बताते हुए श्री नायडू ने जोर देकर कहा कि विविधता में एकता वही है जो हम सभी को एक साथ रखती है। उन्होंने कहा कि भाषा में विविधता एक महान सभ्यता की बुनियाद है और हमारे सभ्यतागत मूल्यों ने अपनी भाषाओं, संगीत, कला, खेल और त्योहारों के माध्यम से खुद को अभिव्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक सीमाएं बदल सकती हैं, लेकिन हमारी मातृभाषा और हमारी जड़ें नहीं बदलेंगी। उन्होंने अपनी मातृभाषाओं को संरक्षित रखने में एकजुट प्रयास का आह्वान किया।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि जहां अपनी भाषा और परंपरा को बचाए रखना जरूरी है, वहीं दूसरों की भाषा और संस्कृति का सम्मान करना भी उतना ही जरूरी है।
इस अवसर पर कांची कामकोटी के पीठाधिपति विजयेंद्र सरस्वती, पूर्व सांसद मगंती मुरली मोहन, विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष मंडली बुद्धप्रसाद, समस्क्रृतिका कलासरधि, सिंगापुर के संस्थापक रत्न कुमार कावतुरू तथा अन्य उपस्थित थे।(PIB)
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