साहित्य

आशा ममगाईं की पुस्तक ‘मदन मोहन डुकलान कु काव्य वैशिष्ट्य अर दर्शन’ का भव्य लोकार्पण

Garhwali Language Literature
Written by admin

Garhwali Language Literature

गढ़वाळि भाषा- साहित्य की गम्भीर अध्येता अर शोधार्थी आशा ममगाईं द्वारा लिखित पुस्तक ‘मदन मोहन डुकलान कु काव्य वैशिष्ट्य अर दर्शन’ को लोकार्पण गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी का करकमलों से ह्वे। आशा ममगाईं जी की य पोथी वूंका ‘गढ़वाली भाषा अर संस्कृति’ विषय मा एम. ए़ का दौरान कर्यां लघु शोध पर आधारित छ।

कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलित का दगड़ मांगल गीत का गायन से ह्वे। येका बाद मंचासीन अतिथियों द्वारा पुस्तक विमोचन करे गे।

पुस्तक विमोचन का बाद पोथि को परिचय देंदा बगत युवा कवि आशीष सुंदरियाल न् बोले कि यु गढ़वाळि साहित्य या साहित्यकार पर गढ़वाळि भाषा मा लिख्यूं अपणा तरां को पैलो शोध छ।  ये से पैली गढ़वाळि साहित्य पर शोध त ह्वे छन पर वो हिंदी या अंग्रेजी भाषा मा लिख्यां छन। वूंको यो बि बोलणू छौ कि आशा ममगाईं जीन् मदन डुकलान की रचनाओं तैं एक नई दृष्टि से देखी अर दर्शन का पुट को अन्वेषण यूं रचनाओं मा करे।

Garhwali Language Literature

येका बाद बालिका स्वाति नौटियाल का द्वारा मदन मोहन डुकलान जी का द्वी प्रसिद्ध गीत- आंदि-जांदि सांस छै तू अर मेरि जन्मभूमि, मेरो पहाड़…को गायन करेगे।

पोथि का विषय मा गढ़वाळि की वरिष्ठ कवियत्री, भाषा विशेषज्ञ अर समीक्षक बीना बेंजवाल जीन् बोले कि समालोचना का क्षेत्र एक नवोन्मेषी प्रयास छ। वूंन् बोले कि इना प्रयासों से लोगों तैं अपणि मातृभाषा मा काम करने प्रेरणा मिलली।

मदन मोहन डुकलान जौंका काव्य पर य पुस्तक आधारित छ, वूंन बोले कि जब आशा ममगाईं जीन् वूंतै फोन करि तैं  बोली कि वो मेरा साहित्य पर शोध कर्नै सोचणी छन त पैलि मी तैं आश्चर्य ह्वे कि गढ़वाळि मा लिखीं रचनाओं पर क्वी शोध कर्नू छ पर फिर खुशी बि ह्वे कि गढ़वाळि भाषा तैं अब लोग महत्व देण लग्यान्। ये श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय को बि बड़ो योगदान छ कि वूंन श्गढ़वाली भाषा और संस्कृतिश् पर पाठ्यक्रम शुरु करे।

गढ़गौरव नरेंद्र सिंह नेगी जीन् अपणा उद्धबोधन मा बोले कि गढ़वाळि भाषा मा शोध होण से गढ़वाळि मा लिखण वळा रचनाकारों मा एक नयो उत्साह एक नई उर्जा को संचार हूंद। साहित्यकार त अपणो काम कर्ना छन पर समाज को बि दायित्व छ कि वो अपणि मातृभाषा गढ़वाळि-कुमाऊंनी तैं आठवीं अनुसूची मा शामिल करवाणै की पहल करींन्। अपणि मातृभाषा तैं उचित सम्मान दिलाणा प्रयास समाज तैं हि कर्न पोड़ला।

अपणि बात मा आशा ममगाईं जीन् उपस्थित सभी अतिथियों अर श्रोताओं को धन्यवाद करे। वूंन बोलि कि ये शोध को आधार डुकलान जी का गीत की ये पंक्ति छन कि ष् आंदि-जांदि सांस छै तू ष् जु वूंन सबसे पैलि अपणि दीदी स्वर्गीय अंजलि का मुख से सूणी थौ।

पुस्तक लोकार्पण का बाद एक छ्वट्टि सि काव्य गोष्ठी बि ह्वे जैमा न्यूत्यां कवि आशीष सुंदरियाल, बीना बेंजवाल, मदन मोहन डुकलान अर गढ़गौरव नरेंद्र सिंह नेगी जी द्वारा कविता पाठ करेगे।

कार्यक्रम को सफल संचालन राघवेंद्र उनियाल अर साधना जोशी जगूड़ी जी द्वारा करेगे।

About the author

admin

Leave a Comment