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प्रो. दिनेश चमोला ‘शैलेश’ पर 15वां राष्ट्रीय व्याख्यानमाला संपन्न: ‘एक था रॉबिन’ उपन्यास की विस्तृत चर्चा

15th National Lecture Series
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15th National Lecture Series

विभिन्न विधाओं में सात दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखने वाले, साहित्य अकादमी के बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित, चर्चित लेखक प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ ने जहां भोपाल में भारत सरकार,शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में ‘हिंदी विज्ञान लेखन में तकनीकी शब्दावली का अनुप्रयोग’ विषय पर प्रथम व्याख्यान दिया, वहीं अपने कृतित्व पर राष्ट्रीय विद्वानों के सान्निध्य से लाभान्वित भी हुए ।

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के संयोजन में प्रख्यात हिंदी साहित्यकार ‘प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर आयोजित पाक्षिक व्याख्यानमाला का पंद्रहवां (15) ऑनलाइन व्याख्यान उनके चर्चित बाल उपन्यास ‘एक था रॉबिन’ विषय पर केंद्रित रहा ।

समारोह के अध्यक्ष के रूप में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी (उत्तराखंड) के कुलपति, प्रोफ़ेसर ओम प्रकाश सिंह नेगी रहे, कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कोच्चि, केरल के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष , प्रो. ए.अजिथा, विशिष्ट अतिथि रहे, जबकि पुणे (महाराष्ट्र) के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं समालोचक प्रो.ओम प्रकाश शर्मा , आमंत्रित विद्वान के रूप में रहे ।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति, प्रोफ़ेसर ओम प्रकाश सिंह नेगी ने कहा कि हिंदी के चर्चित साहित्यकार, प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा,चेन्नई जैसी देश की प्रतिष्ठित संस्था द्वारा अबाध गति से क्रमशः पंद्रह पाक्षिक व्याख्यानों का आयोजन अपने आप में गौरवपूर्ण है ।

प्रो.नेगी ने कहा कि इस महत्त्वपूर्ण आयोजन में देश-विदेश की सुधी विद्वानों की उपस्थिति प्रोफेसर चमोला के विशद साहित्यिक व्यक्तित्व का परिचायक है। देश की अनेकानेक पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से विगत कई दशकों से मैं प्रोफेसर चमोला की बहुमुखी प्रतिभा और लेखन से परिचित हूं। विभिन्न विधाओं में सात दर्जन से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं, जिन पर देश के अनेक विश्वविद्यालयों में पीएचडी स्तरीय अनेक शोध कार्य संपन्न हुए तथा कुछ चल रहे हैं, यह निश्चित रूप से गौरव का विषय है।

प्रोफेसर चमोला केवल उत्तराखंड में ही नहीं, अपितु समूचे भारतवर्ष में अपनी उत्कृष्ट रचनाधर्मिता के लिए सुविख्यात हैं । विगत 43 वर्षों से प्रो.चमोला की यह अखंड साधना इस बात का प्रमाण है कि वह एक सुधी अध्येता के साथ-साथ एक भावप्रवण कवि, जीवंत कथाकार, स्तंभ लेखक, साक्षात्कारकर्ता एवं चर्चित संपादक भी हैं । उन्होंने देश के प्रख्यात पत्रकारों, लेखकों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों तथा अनेक विभूतियों के अनेक साक्षात्कार भी लिए हैं जो आज से तीन-चार दशक पूर्व देश की असंख्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं । वह देश के कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रखर परिचर्चाएं संयोजित करने के लिए भी विख्यात रहे हैं ।

प्रसन्नता है कि उन्हें ‘ गाएं गीत ज्ञान विज्ञान के’ नामक विज्ञान कविता संग्रह पर भारत सरकार, साहित्य अकादमी का ‘बाल साहित्य पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है ।

उनका लेखन बहुआयामी है । वह देवभूमि उत्तराखंड से आते हैं इसलिए अपनी परंपरा के अनुरूप उनके लेखन में; चिंतन में; अनुभूति और अभिव्यक्ति में दर्शनिकता व आध्यात्मिकता का पुट सहज रूप में ही दिखाई देता है । आज का यह कार्यक्रम उनके चर्चित बाल उपन्यास ‘एक था रॉबिन’ पर केंद्रित है, जिसमें बाल मनोविज्ञान,लोक संवेदना एवं पर्यावरण चिंतन जैसे एक समसामयिक मुद्दों की गहराई से चिंता की गई है । इसका कथानक किसी भी भावप्रवण पाठक को अपने बचपन के उन शरारती और जिज्ञासु दिनों को स्मरण करने के लिए गुदगुदाने वाला व झकझोरने वाला है । जिस मां ने ऐसे प्रबुद्ध, कल्पनाशील व कर्मठ साहित्यकार को जन्म दिया, वह मां व मातृभूमि वंदनीय है
जिसमें गला पालन घूमने सचमुच वंदनीय है

वे जितने अच्छे कवि, व्यंग्य लेखक व उपन्यासकार हैं, उससे अधिक प्रभावी बाल साहित्यकार भी हैं जो बहुत सीमित विषयवस्तु में उस असीम के सार्थक संदेश एवं जीवन यथार्थ को प्रकट करने में कदाचित हिचकिचाते नहीं । निश्चित रूप से यह संग्रह, भारतीय जीवन मूल्यों एवं बाल मनोविज्ञान कोआधार बना कर एक विवेकशील व सुसंस्कृत समाज के निर्माण की एक महत्वपूर्ण एवं सार्थक पहल है । मैं इसके लिए प्रबुद्ध कवि को हार्दिक बधाई देता हूं एवं आश्वस्त हूं कि भविष्य में भी प्रो.चमोला अपनी उत्कृष्ट रचनाधर्मिता से हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अपना अपूर्व योगदान पूर्ववत देते रहेंगे । इस आयोजन के लिए मैं पुनः दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा,चेन्नई को
हार्दिक बधाई देता हूं ।

आमंत्रित विद्वान के रूप में प्रो ए अजिथा ने कहा कि यह उपन्यास प्रकृति से दूर होने के दुष्परिणाम तथा मानवीय संवेदनाओं का सूक्ष्म ते चित्रण करता है प्रकृति का शोषण भारत के लिए ही नहीं बल्कि वैश्विक चिंता का विषय है । अपने तप, ज्ञान व सकारात्मक आश्वस्ति से लेखक ने मानवीकरण कर नायक रॉबिन के। माध्यम से उसके अंतर्मुखी शैक्षिकबोध से जंगल व जीवन के अस्तित्वबोध का भी सूक्ष्म चित्रण किया है । इसमें उपन्यासकार ने प्रकृति से मानवीय संबंधों की विस्तृत चर्चा की है नई वआधुनिक शिक्षा प्रदर्शन की पहल करती है जबकि रॉबिन के दिल और दिमाग से उपजी हुई शिक्षा गंभीर दर्शन, पर्यावरण चिंतन, परमार्थ व भौतिकता कल्याण की भावना से ओतप्रोत है । यह उपन्यास लोक और विज्ञान की सूक्षमताओं, चिताओं को समझाते हुए, प्रकृति के संरक्षण के माध्यम से ज्ञान की संवर्धन व दीर्घजीविता की बात पर बल देता है ।

प्रकृति का दयाल दयार्द्र सान्निध्य मनुष्यों को मूल्यों से जोड़े रखता है, इसका संकेत कथाकार जब तब देता रहता है ।

आमंत्रित विद्वान के रूप में पुणे के प्रोफेसर ओम प्रकाश शर्मा ने कहा कि प्रोफेसर चमोला की रचनाधर्मिता बहुआयामी है । हिमालय की पवित्रता की ही तरह उनके लेखन में भी यह निश्चलता, यथार्थता और पारदर्शिता दिखाई देती है। उन्हें अपनी पर्वतीय संस्कृति और पर्वतीय परिवेश से असीमित स्नेह है जो उनके लेखन में अक्षरशः प्रतिबिंबित होती है । इस उपन्यास में पर्वतीय लोक, सांस्कृतिक मूल्यों को छटा कूटकूट कर भरी हुई है । बाल मनोविज्ञान, पर्यावरण चिंतन संतोषी शैली आदि बातों को अपने में अधोरेखित करता है । प्रकृति व लोक के ज्ञान के बिना जीवन, शिक्षा व मूल्यों की शाश्वतता नितांत अस्थाई है, यह उपन्यासकार बार-बार अपने पात्रों के माध्यम से पुष्ट करता रहता है । बाल मनोविज्ञान, पर्यावरण, संस्कृतिबोध, जंगल व जंगली प्रेम के साथ-साथ ईश्वरीय बोध व दर्शन को महीनता से बुना हुआ यह उपन्यास अनुपम व पठनीय ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना से भी भरपूर है ।

उपन्यासकार ने बाल मनोवैज्ञानिक ढंग से रॉबिन का चरित्र चित्रण किया है । रॉबिन के माध्यम से लेखक ने प्राचीन सनातन परंपराओं व मूल्यों को अक्षरश: निरूपित करने सफल प्रयास किया है । पर्वतीय लोक कथा जीतू बागवाला के माध्यम से उपन्यासकार अपने उपन्यास के सेतुओं को गूंथते हुए जहां प्रकृति की सनातन और शाश्वत मूल्यवर्धनबहुल परंपरा का उद्घोष किया है, वहीं ज्ञान की शाश्वतता को अनेक दृष्टांतों से पुष्ट करने का भी सफल प्रयास किया है । इसमें अपनी प्राचीन परंपरा से लेकर आधुनिक ज्ञान परंपरा को गूंथते हुए रचनाकार ने विविधमुखी प्रयोग किए हैं । लोक भाषा व आंचलिकता का पुट उपन्यास के कथानक में स्वत: ही उभर कर आया है जो लेखक की विशेष दृष्टि संपन्नता को दर्शाती है ।

अनेक विषयों पर जानकारीप्रद ज्ञान को समेटे यह उपन्यास प्राचीनता व नवीनता का सुंदर सामंजस्य प्रस्तुत करता है । बदलते हुए समाज की चिंताओं को आधार बनाकर लिखी गई यह कृति महत्वपूर्ण ही नहीं, बल्कि हम सबके लिए प्रेरणादाई व अनुकरणीय भी हैं । प्रो. मंजुनाथ अम्बिग, शोधार्थी भावना गौड़, विनीता सेतुमाधवन ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया ।

ध्यातव्य है कि 14 जनवरी, 1964 को उत्तराखंड के aरुद्रप्रयाग जनपद के ग्राम कौशलपुर में स्व.पं. चिंतामणि चामोला ज्योतिषी एवं श्रीमती माहेश्वरी देवी के घर मेँ जन्मे प्रो. चमोला ने शिक्षा में प्राप्त कीर्तिमानों यथा एम.ए. अंग्रेजी, प्रभाकर; एम. ए. हिंदी (स्वर्ण पदक प्राप्त); पीएच-डी. तथा डी.लिट्. के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी राष्ट्रव्यापी पहचान निर्मित की है। अभी तक प्रो. चमोला ने उपन्यास, कहानी, दोहा, कविता, एकांकी, बाल साहित्य, समीक्षा, शब्दकोश, अनुवाद, व्यंग्य, खंडकाव्य, व्यक्तित्व विकास, लघुकथा, साक्षात्कार, स्तंभ लेखन के साथ-साथ एवं साहित्य की विविध विधाओं में लेखन किया है।

पिछले इकलीस (41) वर्षों से देश की अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए अनवरत लिखने वाले साहित्यकार प्रो.चमोला राष्ट्रीय स्तर पर साठ से अधिक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं व तिरासी (83) मौलिक पुस्तकों के लेखक के साथ-साथ हिंदी जगत में अपने बहु-आयामी लेखन व हिंदी सेवा के लिए सुविख्यात हैं।

आपकी चर्चित पुस्तकों में ‘यादों के खंडहर, ‘टुकडा-टुकड़ा संघर्ष, ‘प्रतिनिधि बाल कहानियां, ‘श्रेष्ठ बाल कहानियां, ‘दादी की कहानियां¸ नानी की कहानियां, माटी का कर्ज, ‘स्मृतियों का पहाड़, ’21श्रेष्ठ कहानियां‘ ‘क्षितिज के उस पार, ‘कि भोर हो गई, ‘कान्हा की बांसुरी, ’मिस्टर एम॰ डैनी एवं अन्य कहानियाँ,‘एक था रॉबिन, ‘पर्यावरण बचाओ, ‘नन्हे प्रकाशदीप’, ‘एक सौ एक बालगीत, ’मेरी इक्यावन बाल कहानियाँ, ‘बौगलु माटु त….,‘विदाई, ‘अनुवाद और अनुप्रयोग, ‘प्रयोजनमूलक प्रशासनिक हिंदी, ‘झूठ से लूट’, ‘गायें गीत ज्ञान विज्ञान के’ ‘मेरी 51 विज्ञान कविताएँ’ तथा ‘व्यावहारिक राजभाषा शब्दकोश’ आदि प्रमुख हैं। हाल ही में आपकी अनेक पुस्तकें- ‘सृजन के बहाने: सुदर्शन वशिष्ठ’; ’21 श्रेष्ठ कहानियां’ (कहानियां); ‘बुलंद हौसले’ (उपन्यास); ‘पापा ! जब मैं बड़ा बनूंगा’; ‘मेरी दादी बड़ी कमाल’ (बाल कविता संग्रह) तथा ‘मिट्टी का संसार’ (आध्यात्मिक लघु कथाएं) आदि प्रकाशित हुई हैं।

प्रो. चमोला ने 22 वर्षों तक चर्चित हिंदी पत्रिका “विकल्प” का भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून से संपादन किया है तथा दो बार इस पत्रिका को भारत के राष्ट्रपति के हाथों प्रथम व द्वितीय पुरस्कार दिलाया है। आप देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, आयोगों व संस्थानों की शोध समितियों ; प्रश्नपत्र निर्माण व पुरस्कार मूल्यांकन समितियों के सम्मानित सदस्य/विशेषज्ञ हैं।

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