शब्दयात्री-73
डॉ सुशील उपाध्याय
इन दिनों दो शब्द खूब चर्चा में हैं- बाबा और लाला। दोनों स्वामी रामदेव के साथ जुड़े हैं, बाबा रामदेव और लाला रामदेव। चूंकि बाबा रामदेव का एक कारोबारी साम्राज्य है और वह अक्सर कई तरह के विवादों में भी पड़ते रहते हैं इसलिए कई लोग उन्हें ‘बाबा’ की बजाय ‘लाला’ पदवी के साथ जोड़ कर संबोधित करते हैं। ताजा सन्दर्भ में इस ‘लाला’ शब्द को देखिए तो इसकी ध्वनि नकारात्मक महसूस होती है और इस वक्त इसे प्रकारांतर से गाली के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। यानी बाबा एक सकारात्मक ध्वनि है और लाला एक नकारात्मक ध्वनि। पर, क्या वास्तव में ऐसा है ?
लाला शब्द को कई अर्थों में प्रयोग में लाया जाता है। वर्तमान में, सामान्य तौर पर यह जाति-सूचक शब्द है, जिसे देश के कुछ हिस्सों में कायस्थ लोगों के लिए और कुछ हिस्सों में वैश्य समाज के लिए किसका प्रयोग किया जाता है। इसे व्यापारी और महाजन के पर्याय के रूप में भी स्वीकार किया जाता है। कोई शब्द किस तरह से नकारात्मक ध्वनि को ग्रहण कर लेता है, लाला शब्द इसका एक बड़ा उदाहरण है, जबकि यह शब्द मूलतः आदरसूचक शब्द है, जैसे लाला लाजपत राय, लाला हरदयाल आदि। (कृपया, इस कड़ी में करीम लाला को न जोड़ें।) अंग्रेजी मैं इसके बरअक्स ‘सर’ शब्द को रख सकते हैं।
व्याकरणिक दृष्टि से देखें तो हिंदी में लाला शब्द संज्ञा है और पुल्लिंग है। यह शब्द गुजराती, नेपाली, पंजाबी, उर्दू, डोगरी और बांग्ला आदि में भी लगभग उसी अर्थ में प्रयोग किया जाता रहा है, जिस अर्थ में इसे हिंदी में ग्रहण किया गया है। कुछ लोग इसे ‘महाशय’ और ‘साहब’ का पर्याय भी मानते हैं। साहब और महाशय, ये दोनों ही शब्द किसी उच्च श्रेणी के मनुष्य की तरफ इशारा करते हैं। हालांकि, अतीत में हिंदी साहित्य और हिंदी फिल्मों में लाला शब्द को कई जगह एक नकारात्मक ध्वनि के साथ प्रयोग में लाया जाता रहा है। प्रेमचंद की कहानियों में इसके कई उदाहरण मिल जाएंगे। और पुरानी फिल्मों का सुक्खी लाला तो सभी को याद है। यानी ऐसा व्यापारी जो लोगों को कई स्तरों पर ठगता है और सूदखोर है।
लाला शब्द का देशज प्रयोग ‘लाले’ के रूप में भी मिलता है। पश्तो भाषा में ‘लाले की जान’ जैसे संवाद सुनने को मिल सकते हैं। देशज में ही लाला को ला+ला (लाओ, लाओ) के रूप में भी देखा जाता है। यानी ऐसा व्यक्ति जो हमेशा नई पूंजी, ज्यादा पैसे या ज्यादा धन की मांग करता रहता है, उसे लाला कहने लगते हैं।
लाला का एक पर्याय ‘सेठ’ (कुछ भाषाओं में शेठ) भी है। जो श्रेष्ठ (श्रेष्ठि) शब्द का तद्भव है। यदि इतिहास में जाकर देखें तो बौद्ध धर्म और जैन धर्म के विस्तार और इन्हें आश्रय देने में इस श्रेष्ठि वर्ग की बहुत बड़ी भूमिका रही है। इससे पूर्व, सनातन या ब्राह्मण धर्म को श्रेष्ठि वर्ग का वैसा समर्थन प्राप्त नहीं था, जैसा कि बौद्ध और जैन धर्म को प्राप्त हुआ। इससे यह स्थापित होता है कि सेठ अर्थात लाला समुदाय उस दौर में भी काफी प्रतिष्ठित रहा है। सम्राट अशोक की उज्जैन निवासी एक पत्नी इसी समुदाय की थी।
वैसे, यह शब्द केवल व्यापारी समुदाय तक ही सीमित नहीं है। इसके और भी कई अर्थ हैं। विभिन्न भाषाओं और बोलियों में लाला को छोटे बच्चे, पति के छोटे भाई अर्थात देवर और सुंदर व्यक्ति के लिए भी इस्तेमाल में लाया जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में पिता के लिए भी लाला या लाल्ला सम्बोधन प्रयुक्त होता रहा है। इसी शब्द से लल्ला, लली और लाली भी बने हैं। लल्ला (लला) ब्रज और अवधि, दोनों भाषाओं (बोलियों) में मिलता है। भगवान राम के बाल रूप के साथ भी लला शब्द को जोड़ा जाता है। उत्तर भारत मे दशकों तक यह नारा सुनाई देता रहा है, ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’।
इसी तरह भगवान कृष्ण के बारे में सूरदास तथा अन्य कवियों द्वारा अपने विभिन्न पदों में लला और लाला दोनों शब्दों का प्रयोग किया गया है। उदाहरण के लिए, ‘लला फिर आइयो खेलन होरि’ और ‘आनंद की निधि मुख लाला को’ आदि पंक्तियों को देख सकते हैं। लली और लाली शब्द लाला के स्त्रीलिंग रूप हैं। लली में भी वैसा ही स्नेह निहित है जैसा कि लाला में। लली को राधा के लिए भी प्रयोग किया गया है। वैसे, लाला की पत्नी को देशज में ‘ललाइन’ भी कहते हैं। और इसका अर्थ गोल-मटोल, सुंदर महिला के तौर पर ग्रहण किया जाता है।
कुछ लोग लाला को लाल शब्द के साथ भी जोड़ कर देखते हैं। लाल का अर्थ पुत्र और हीरे-जवाहरात के रूप में भी लिया जाता है। लाल को नवरत्नों में से एक माना जाता है। लाल शब्द एक छोटी चिड़िया के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है, जिसे पंजाबी में लालड़ी भी कहते हैं। इसी तरह, फारसी में लाल का अर्थ होता है, सुर्ख या गहरा रंग। जबकि संस्कृत में लाल को लार के पर्याय माना गया है। लाल और लाला के साथ कई तरह के मुहावरे भी जुड़े हैं। कुछ मुस्लिम जातियों और कायस्थ लोगों में ‘लाला भाई’ संबोधन आदर और प्यार दोनों को ध्वनित करता है।
अब लाला शब्द के इन तमाम अर्थों के दृष्टिगत जब इसे रामदेव के साथ जोड़कर प्रचारित किया जाता है तो इनकी ध्वनि किसी सम्मानित और आदरणीय व्यक्ति के साथ नहीं जुड़ती, बल्कि यह ध्वनि एक ऐसे व्यक्ति को सामने रखती है जो अपने मूल कार्य अर्थात धर्म-अध्यात्म से परे जाकर कारोबार के साथ जुड़ गया है। यह शब्द यहां विरोधाभास के जरिए एक नए अर्थ को सामने ला रहा है। ‘बाबा’ की जगह ‘लाला’ टाइटल से रामदेव को कितना फर्क पड़ा होगा, इसका तो पता नहीं है, लेकिन एक अच्छे शब्द ने अनावश्यक रूप से बुरा अर्थ ग्रहण कर लिया है।