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श्रीदेवताल–माणा पास लोकविरासतीय सीमा दर्शन यात्रा 12 से 14 अक्टूबर तक

Folk heritage border tour
Written by Subodh Bhatt

Folk heritage border tour

देहरादून। भारत–तिब्बत (चीन) सीमा पर, श्रीबदरीनाथ धाम से लगभग 55 किलोमीटर दूर, उच्च हिमालय क्षेत्र में 18,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित श्रीदेवताल–माणा पास सीमा दर्शन यात्रा इस वर्ष 12 से 14 अक्टूबर 2025 तक आयोजित की जाएगी।

आयोजन समिति के सदस्य प्रो. सुभाष चंद्र थलेड़ी ने बताया कि इस पवित्र यात्रा की शुरुआत वर्ष 2015 में स्वर्गीय मोहन सिंह रावत ‘गांववासी’, पूर्व कैबिनेट मंत्री, उत्तराखंड द्वारा की गई थी। अब यह यात्रा उनके प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है। यात्रा संयोजक अभिषेक भंडारी ने बताया कि गत वर्ष भी देवताल–माणा पास लोकविरासतीय लोकजात्रा का भव्य आयोजन किया गया था। इस यात्रा का उद्देश्य सीमांत क्षेत्रों की लोक विरासत से जनसंपर्क स्थापित करना और देश की सीमाओं के दर्शन कर राष्ट्रभाव को सशक्त बनाना है।

यात्रा के संरक्षक पं. भास्कर डिमरी ने बताया कि श्रीदेवताल सरोवर पवित्र सरस्वती नदी का उद्गम स्थल है और यह सरोवर विश्व की सबसे ऊँचाई पर स्थित झील मानी जाती है। सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए इसकी पवित्रता कैलाश मानसरोवर के समान मानी जाती है। उन्होंने बताया कि यह क्षेत्र 1962 के बाद बंद था, परंतु स्व. ‘गांववासी’ जी के सतत प्रयासों से 2015 में जिला प्रशासन एवं सेना की अनुमति से सीमित यात्रियों के साथ इस यात्रा का पुनः शुभारंभ हुआ, जो अब प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है।

यात्रा के संस्थापक सदस्य एवं बदरी–केदारनाथ मंदिर समिति के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी, भारतीय वन सेवा के अधिकारी बी.डी. सिंह ने कहा कि सीमांत क्षेत्रों में स्थित सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने बताया कि यह यात्रा लोक धरोहरों से आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रतीक है।
बदरीनाथ निवासी एवं संस्थापक सदस्य विमल पंवार ने कहा कि स्व. ‘गांववासी’ जी की यह दूरदृष्टि थी कि उन्होंने हिमालय की उपेक्षित धरोहरों को जनमानस से जोड़ने का बीड़ा उठाया।

इस वर्ष भी यात्रा कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी (14 अक्टूबर) को संपन्न होगी। स्व. ‘गांववासी’ जी द्वारा देवताल सरोवर के तट पर स्थापित दक्षिणमुखी श्री हनुमान मंदिर में परंपरानुसार अभिषेक एवं विशेष पूजा आयोजित की जाएगी। यह मंदिर भी विश्व का सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित हनुमान मंदिर माना जाता है।

देवताल सरोवर का हमारी संस्कृति में विशेष स्थान है — यहीं से पवित्र सरस्वती नदी का उद्गम होता है, जो आगे चलकर बदरीनाथ धाम के समीप माना गाँव में अलकनंदा नदी में मिलती है।धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण इसी मार्ग से कैलाश मानसरोवर गए थे और उन्होंने देवताल सरोवर में स्नान किया था। तिब्बत स्थित थोलिंग मठ से बदरीनाथ मंदिर को चंवर, कस्तूरी आदि का प्रसाद इसी मार्ग से भेजा जाता था और भगवान बदरीनाथ का प्रसाद तिब्बत भेजा जाता था। जो 1962 से बन्द हो गया था।

यात्रा परंपरानुसार श्री बदरीनाथ जी के ध्वज (बदरीध्वज) की अगुवाई में प्रारंभ होगी।

12 अक्टूबर को सभी यात्री श्री बदरीनाथ धाम में एकत्रित होंगे।

13 अक्टूबर को धाम स्थित देवस्थलों में पूजा-अर्चना और बदरिध्वज ग्रहण समारोह सम्पन्न होगा।

14 अक्टूबर की प्रातः यात्रा दल देवताल–माणा पास के लिए प्रस्थान करेगा और पूजा-अर्चना के पश्चात् शाम तक श्री बदरीनाथ धाम लौट आएगा।

पूरी यात्रा में आईटीबीपी और भारतीय सेना के जवान मार्गदर्शन व सहयोग प्रदान करेंगे। इस यात्रा में लगभग चार दर्जन यात्री सम्मिलित होंगे। आयोजन समिति ने इसके लिए प्रशासन और सेना से आवश्यक अनुमति एवं सहयोग का अनुरोध किया है।

यह लोकजात्रा नितांत धार्मिक एवं आध्यात्मिक यात्रा है, जिसका उद्देश्य हिमालयी लोकधरोहरों का संरक्षण और सांस्कृतिक चेतना का संवर्धन है। यह यात्रा स्व. मोहन सिंह रावत ‘गांववासी’ जी की स्मृति एवं श्रद्धांजलि स्वरूप संपन्न की जाएगी।

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