Garhwalis toimus häälevargus
दिनेश शास्त्री
आजकल देश में वोट चोरी को लेकर राजनीतिक माहौल गर्म है। तरह तरह के तर्क दिए जा रहे हैं लेकिन गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में 1981 में हुई वोट चोरी की बात कोई नहीं कर रहा। जनता पार्टी की सरकार के पतन के बाद उसके सभी घटक दल अलग अलग हो गए थे। जनसंघ का पुनर्गठन भारतीय जनता पार्टी के रूप में हुआ तो बहुगुणा की कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी का कांग्रेस में विलय हो गया था। चौधरी चरण सिंह की सरकार बहुगुणा की सीएफडी के जरिए ही बनी थी लेकिन जब इंदिरा गांधी अपने छोटे बेटे संजय गांधी के साथ बहुगुणा को मनाने उनके पास गई तो सीएफडी का अस्तित्व विसर्जन कर बहुगुणा कांग्रेस में आ गए। उससे पहले इंदिरा ने संजय गांधी से कहा था कि मामा जी के पैर छुओ, संजय ने बहुगुणा के पैर छुए और वे कांग्रेस के मुख्य महासचिव बना दिए गए। कांग्रेस में यह पद पहली और आखिरी बार सृजित हुआ था। संगठन निर्माण में बहुगुणा का कोई सानी नहीं था, लिहाजा इंदिरा गांधी की 1980 में सत्ता में वापसी हुई। सब कुछ ठीक चल रहा था। एक दिन अचानक दिल्ली की सड़कें बहुगुणा के पोस्टर बैनरों से पटी थी।
बहुगुणा को भारत का भविष्य बताया गया था। इंदिरा गांधी और संजय ने संसद जाते हुए यह नजारा देखा तो बहुगुणा को एक बार फिर किनारे करने की तिकड़म शुरू हुई। इससे पहले 1975 में बहुगुणा को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से सिर्फ इस वजह से हटा दिया गया था, चूंकि रूसी राजदूत ने लखनऊ के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में बहुगुणा को भारत का भावी पीएम बता दिया था। सत्ता की यह बड़ी कमजोरी होती है कि सत्तासीन व्यक्ति प्रतिद्वंदी को देखना पसंद नहीं करता।
बहरहाल 1981 के घटनाक्रम के बाद कांग्रेस अपने असली रंग में आई और बहुगुणा के विरुद्ध षडयंत्र तेज होने लगे। तब वो मामा जी वाला रिश्ता भी यमुना में बहा दिया गया। तब कोई दल बदल निरोधक कानून भी नहीं था। बहुगुणा चाहते तो सांसद बने रह सकते थे लेकिन वे ठहरे ठेठ सिद्धांतवादी। बहुगुणा ने कहा कि मैं तुम्हारे टिकट पर चुन कर संसद में आया था, तुम्हारा टिकट तुम्हें मुबारक और इस्तीफा देकर आ गए। उसी समय बहुगुणा ने कहा था कि हिमालय टूट सकता है लेकिन झुक नहीं सकता।
बहरहाल गढ़वाल लोकसभा सीट रिक्त घोषित होने पर उपचुनाव की घोषणा हुई और बहुगुणा तराजू चुनाव चिह्न के साथ मैदान में उतरे। इंदिरा गांधी के लिए भी यह प्रतिष्ठा का विषय बन गया था, इसलिए बहुगुणा का मुकाबला करने के लिए उत्तर प्रदेश में मंत्री चंद्रमोहन सिंह नेगी को मैदान में उतारा गया। एक तरफ सत्ता का बल था, दूसरी तरफ जन बल के बूते बहुगुणा चुनाव मैदान में थे। बहुगुणा को हराने के लिए हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान के मुख्यमंत्री और तमाम कांग्रेस नेता रात दिन एक किए हुए थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह पूरे एक महीने गढ़वाल संसदीय सीट में कैम्प करते रहे। मतदान के दिन जिस तरह से वोट चोरी हुई, आजाद भारत में शायद ही उस तरह का दूसरा उदाहरण हो। उत्तर प्रदेश के एक मंत्री ने वोट चोरी रोकने की कोशिश कर रहे समाजवादी नेता राजनारायण की दाढ़ी को नोचने की कोशिश तक की। कोटद्वार से श्रीनगर, देहरादून से माणा तक चुनाव जीतने के लिए जितने हथकंडे हो सकते थे, कांग्रेस ने अपनाए।
देश विदेश का मीडिया उस समय गढ़वाल में था। बाकायदा मैनेज्ड मीडिया सत्ता के गुणगान में व्यस्त था। उत्तराखंड के एक पूर्व मुख्यमंत्री लखनऊ से एक बड़ी मीडिया टीम को लेकर आए थे। उनमें से कई लोग हाल में मुझे मिले भी हैं। वे उस सैर सपाटे को अपने जीवन का अविस्मरणीय दौर बताते हैं। वह टीम पूरे चुनाव अभियान के दौरान गढ़वाल में रही थी लेकिन वोट चोरी को किसी ने रिपोर्ट नहीं किया। कोटद्वार में वोट चोरी रोकने का दुस्साहस करने पर डी एस रावत को अधमरा कर दिया गया। गढ़वाल विश्वविद्यालय के चंद्रमोहन पंवार के बाजू में गोली मारी गई। ऐसी एक नहीं सैकड़ों घटनाएं हुई थीं, जहां भी किसी ने वोट चोरी रोकने की हिम्मत दिखाई, बुरी तरह पीटा गया।
हालांकि कई स्थानों पर महिलाओं ने मोर्चा संभाला और वोट चोरी कर रहे लोगों को कंडाली लगा कर भगाया।उसी समय जान जोखिम का खतरा उठा कर वोट चोरी के फोटो किसी तरह एक साहसी फोटोग्राफर ने उस समय की चर्चित पत्रिका रविवार तक पहुंचाए। रविवार ने उस घटना को कवर स्टोरी बनाया। बहुगुणा ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उसके बाद अन्य अखबारों ने भी मजबूरी में वोट चोर का पर्दाफाश किया। अन्ततः लोकतंत्र की लाज बचाते हुए तत्कालीन चुनाव आयुक्त शकधर ने गढ़वाल संसदीय उप चुनाव को निरस्त किया। पूरी जांच पड़ताल के बाद चुनाव आयोग ने दोबारा मतदान कराया गया तो बहुगुणा ने पूरी तैयारी से कांग्रेस का मुकाबला किया। बैलेट बॉक्स को पीठासीन अधिकारी द्वारा सील किए जाने के बाद बहुगुणा के हस्ताक्षर वाली सील भी लगाई गई थी। पहली बार चुनाव आयोग ने प्रत्याशी को अपनी सील लगाने की अनुमति दी थी।
पिछले अनुभव को देखते हुए बहुगुणा ने चुनाव आयोग से यह अनुमति भी हासिल की थी कि बैलेट बॉक्स लेकर चलने वाली बस के पीछे अपनी एक जीप को निगरानी के लिए चलाया था। आखिरकार सत्ता और धनबल को नकारते हुए जनबल के बूते बहुगुणा शान से जीते और वोट चोरी के एक अध्याय पर विराम लगा। 1981 के उस ऐतिहासिक चुनाव के हजारों प्रत्यक्षदर्शी आज भी गढ़वाल में मौजूद हैं और हर चुनाव में उस समय की घटनाओं को सार्वजनिक करते रहते हैं। यादों के उस पिटारे से आज इतना ही।