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देहरादून। विशेषज्ञों ने छात्र-छात्रओं से तकनीक की मदद से प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए नई खोज करने का आह्वान किया।
ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में लैंडस्लाइड यूसिंग अर्थ ऑब्जर्वेशनल डाटा पर कार्यशाला शुरू हो गई। यह कार्यशाला छह दिन चलेगी। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को इसरो के भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान के निदेशक डा. आर. पी. सिंह ने मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए कहा कि नई तकनीकें प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में क्रांतीकारी बदलाव ला रही हैं। ये तकनीकें न केवल खराब मौसम बल्कि भू-स्खलन, साइक्लोन जैसी आपदाओं को पहले ही मानिटरिंग करके अगाह कर देती हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में भू-स्खलन के अनेक कारण है लेकिन सबसे बड़ा कारण बढ़ती जनसंख्या है।
पहाड़ों पर ज्यादा कंस्ट्रशन होने की वजह से भू-स्खलन हो रहा है। उन्हांेने छात्र-छात्राओं को अर्थ ऑब्जर्वेशनल डाटा के बारे में बताते हुए कहा कि इसकी मदद से प्राकृतिक आपदाओं के कारकों को जान पायेंगे साथ ही उनसे निपटा कैसे जाये और चुनौतियों के बारे में समझ सकेंगे। उन्होंने छात्र-छात्राओं से प्राकृतिक संसाधानों को संरक्षित करने की बात कही।
भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान के वैज्ञानिक डा. एन. आर. पटेल ने कहा कि उत्तराखण्ड जितना खूबसूरत है उतना ही चुनौतियों से भरा है फिर चाहे वो भू-स्खलन हो या बाढ़ आपदा। डा. पटेल ने कहा कि इससे निपटने से पहले इसको जानना आवश्यक है कि ये आपदाएं बार-बार क्यों आ रही हैं। इसके लिए जरूरी है कि युवा इन क्षेत्रों में शोध करे।
उन्हांेने कहा कि यह केवल तकनीकी क्षेत्र का काम नहीं है इसमें समाज भी जुड़ा है। लोगों को अपने स्तर पर सावधानी बरतनी चाहिए ताकी पर्यावरण को नुकसान से बचाया जा सके। ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के कुलपति डा. नरपिन्दर सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन आने वाले समय की एक बड़ी समस्या है। इसके लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जायें।
कार्यशाला का आयोजन ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के सिविल इंजीनियरिंग और पैट्रोलियम इंजीनियरिंग ने इसरो के सहयोग से किया। कार्यशाला में सिविल इंजीनियरिंग के एचओडी डा. के. के. गुप्ता, पैट्रोलियम इंजीनियरिंग के एचओडी डा. विरेन्द्र बहादुर सिंह, संयोजक डा. के. एस. रावत, डा. दीपशिखा शुक्ला, डा. संजीव कुमार और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।