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जल स्रोतों में जल उपलब्धता के लिए ‘स्प्रिंगशैड मैनेजमेन्ट प्लान’ के तहत होगा कार्य: महाराज

Climate change
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देहरादून। उत्तराखंड वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे वर्षा आधारित पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि, तापमान में बढ़ोत्तरी और पानी की उपलब्धता में कमी आई है। जिस कारण अधिकांश फसलों की उत्पादकता प्रभावित हुई है।

उक्त बात प्रदेश के जलागम मंत्री सतपाल महाराज ने मंगलवार को जलागम विभाग द्वारा आईसीएफआरई, ऑडिटोरियम, एफआरआई केंपस में आयोजित ‘उत्तराखंड जलवायु अनूकूल बारानी कृषि परियोजना कार्यशाला’ में बतौर मुख्य अतिथि अपने संबोधन में कही। इस कार्य के लिए उत्तराखंड का चुनाव करने पर उन्होंने भारत सरकार एवं विश्व बैंक का आभार भी व्यक्त किया।

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जलागम मंत्री श्री महाराज ने कहा कि उत्तराखण्ड के चयनित सूक्ष्म जलागम क्षेत्रों में पर्वतीय कृषि को लाभदायक तथा ग्रीन हाउस गैस न्यूनीकरण हेतु सक्षम बनाने के लिए शक्तिशाली उत्पादन प्रणाली विकसित की जा रही है। उन्होंने कहा कि इसी के तहत ‘विश्व बैंक पोषित उत्तराखण्ड जलवायु अनुकूल बारानी कृषि परियोजना’ का जलागम विभाग द्वारा आज से संचालन प्रारम्भ किया जा रहा है।

श्री महाराज ने कहा कि छः वर्षीय यह परियोजना चयनित 8 जनपदों में प्रारम्भ की जायेगी और इस परियोजना से 519 ग्राम पंचायतों की कुल 3.7 लाख जनसंख्या को लाभ मिलेगा। यह पहली ऐसी परियोजना है जो जलवायु परिवर्तन से कृषि क्षेत्र में हो रहे प्रभावों को कम करने हेतु विभिन्न जलवायु अनुकूल कृषि प्रणालियों को परियोजना क्षेत्र के तहत मॉडल रूप में विकसित करेगा।

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पर्वतीय क्षेत्रों में जल स्रोत जन समुदाय की जीवन रेखा है। जलवायु परिवर्तन से प्रदेश में जो जल स्रोत सर्वाधिक प्रभावित हो रहे हैं। उन जल स्रोतों में जल उपलब्धता में वृद्धि एवं इनके सतत् प्रबन्धन हेतु स्प्रिंगशैड मैनेजमेन्ट प्लान की अवधारणा के अनुरूप कार्य किया जायेगा।

जलवायु अनुकूल व्यवसायिक कृषि पद्धतियों को अपनाने से कृषकों की आय में वृद्धि होगी और परियोजना क्षेत्रों में विभिन्न कारणों से बंजर हो चुकी कृषि भूमि को पुनः उत्पादक बनाने हेतु विभिन्न वृक्ष प्रजातियों को भी रोपित किया जायेगा।

जलागम मंत्री ने कहा कि हम ‘सबका साथ सबका विकास’ के मूलभूत सिद्धांत पर कार्य कर रहे हैं। वर्तमान परिदृश्य में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारक है। भारत द्वारा वर्ष 1970 तक शून्य ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का संकल्प लिया गया है।

इस परियोजना की महत्वपूर्ण बात यह है कि कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के ख्याति प्राप्त राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक संस्थान कंसोर्टियम पार्टनर्स के रूप में उत्तराखंड से जुड़ेंगे और इन संस्थाओं के वैज्ञानिकों द्वारा सुझाई गई तकनीक का प्रयोग इस परियोजना के अंतर्गत किया जाएगा।

इस अवसर पर कैंट विधायक सविता कपूर, जलागम के मुख्य परियोजना निदेशक आनंद वर्धन, परियोजना निदेशक नीना ग्रेवाल, सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता जयपाल, विश्व बैंक टास्क टीम लीडर रंजन सामन्त्रे, पंचायती राज विभाग के संयुक्त निदेशक राजीव नाथ त्रिपाठी, डॉ. रेनू सिंह, डॉ. ए.के. नायक, प्रोफेसर सुमित सेन, डॉ. एम.के. वर्मा, प्रोफेसर शेखर मुद्दू, डॉ. लक्ष्मीकांत, डॉ. सुभाष शर्मा एवं डॉ ए.एस. नैन आदि अधिकारी मौजूद थे।

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