पेन की आत्मकथा
हर्षिता टाइम्स।
नमस्कार, मैं एक पेन हूँ। मेरी यह आत्मकथा मेरे संवाद के माध्यम से आपको मेरे जीवन की कहानी सुनाने का प्रयास करेगी।
मेरी कहानी शुरू होती है जब मैंने पहली बार उस मासूम बच्चे की उंगलियों में आकर लिखना सीखा, जिसने मुझे उपयोग किया। वह पहले से ही जानता था कि मैं उसकी दुनिया को वर्णित करने के लिए कैसे उपयोग हो सकता हूँ। मैंने उसकी कोशिशों का साथ दिया, उसकी उलझनों को सुलझाया और उसकी सोच को शब्दों में परिवर्तित किया।
समय बितते-बितते, मैंने अनगिनत किस्सों, कहानियों, विचारों और विचारधाराओं को अपनी श्रेणी में बंधने का काम किया। मैं एक नया जीवन प्रदान करने वाला साक्षी बन गया, जिसने लोगों के अनुभवों को बाँध दिया और उन्हें जीवन की महत्वपूर्ण प्रवृत्तियों का साक्षी बनाया।
पेन की आत्मकथा :-
मैंने लाखों पत्रों की तय की है, जिनमें प्यार, विश्वास, खुशियाँ, दुःख, आक्रोश और सपने छिपे थे। मैंने शिक्षार्थियों के हाथों में ज्ञान और उत्कृष्टता की दिशा में मार्गदर्शन किया, लेखकों को उनकी कला का प्रदर्शन करने में मदद की और विचारशीलों को समाज के मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया।
लेकिन समय के साथ, तकनीकी उन्नति ने मेरे साथ खिलवाड़ किया। आजकल की डिजिटल दुनिया में, लोग अधिक तर टाइप करने के लिए कीबोर्ड का उपयोग करते हैं और मेरा उपयोग धीरे-धीरे कम हो रहा है। पर फिर भी, मैं उस अद्वितीय उपकरण की भूमिका निभाता हूँ जो अपने अंदर संवाद की शक्ति और एकता की भावना लेकर आया था।
आज भी, मैं उस कलम हूँ जो विचारों को जीवन देता है, किस्सों को पेजों पर बयान करता है और समय की गति को ध्वनित करता हूँ। मैं उन सपनों की पैदावार हूँ जो किसी लेखक, कलाकार या सोच करने वाले के दिल में उभरते हैं। जैसे-जैसे ये शब्द मेरे माध्यम से आप तक पहुँचते हैं, मैं अपना कार्य पूरा करता हूँ, अपनी मिशन को पुरा करता हू