Digital preservation eternal wisdom
देहरादून। नालन्दा पुस्तकालय शोध एवं अनुसंधान केन्द्र, पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विभाग, स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय, देहरादून तथा महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी “वैदिक साहित्य में सन्निहित शाश्वत ज्ञान का डिजिटल संरक्षण एवं उभरते नवाचार” का सफलतापूर्वक समापन हुआ। यह संगोष्ठी देश के प्रथम “लेखक गाँव” (थानो, देहरादून) में 31 अक्टूबर से 2 नवम्बर 2025 तक संपन्न हुई।संगोष्ठी का उद्घाटन भारत के पूर्व केन्द्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ द्वारा दीप प्रज्वलन एवं मंगलाचरण के साथ किया गया।
उद्घाटन सत्र में संगोष्ठी की संयोजक डॉ. इन्दु भारती धिल्डियाल ने स्वागत भाषण एवं संगोष्ठी अवलोकन प्रस्तुत किया। उन्होंने नालन्दा विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक गौरवगाथा को स्मरण करते हुए कहा कि नालन्दा केवल एक विश्वविद्यालय नहीं, बल्कि भारत की ज्ञानपरंपरा का अमिट प्रतीक था। डॉ. निशंक ने अपने संबोधन में कहा कि “विज्ञान और वेद का संगम ही भारत को पुनः विश्वगुरु बनाएगा।” उन्होंने बताया कि संस्कृत, कंप्यूटर विज्ञान और आधुनिक विज्ञान- ये तीनों क्षेत्र यदि साथ आएँ, तो वेदों में निहित शाश्वत ज्ञान का संरक्षण और प्रसार डिजिटल युग में संभव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) हमारे लिए एक चुनौती भी है और अवसर भी, और यदि हम इसका सदुपयोग करें तो वैदिक ज्ञान का स्वर्णिम युग पुनः लौट सकता है।

महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन के संयुक्त निदेशक डा. अनूप कुमार मिश्र ने प्रतिष्ठान की गतिविधियों की जानकारी दी तथा उत्तराखंड में इसकी शाखा स्थापित करने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि संस्था का प्रमुख उद्देश्य गुरु-शिष्य परंपरा का पुनर्जीवन और वैदिक विद्या को आधुनिक युग से जोड़ना है। इस अवसर पर प्रो. प्रदीप राय, डा. राजेश, प्रो. प्रदीप भारद्वाज, और प्रो. गोविन्द सिंह रजवार सहित अनेक विद्वानों ने वैदिक ज्ञान, विज्ञान और डिजिटलीकरण पर अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए।संगोष्ठी के दूसरे दिन विभिन्न भाषाओं कृ हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेज़ी कृ में शोधपत्रों का प्रस्तुतिकरण हुआ। शोधार्थियों ने वैदिक साहित्य, सूचना प्रौद्योगिकी, और सांस्कृतिक अध्ययन पर अपने अनुसंधान प्रस्तुत किए। विशेषज्ञों द्वारा शोधपत्रों पर गहन विमर्श किया गया तथा युवाओं को वैदिक अध्ययन के नये आयामों पर कार्य करने हेतु प्रेरित किया गया।

समापन सत्र में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. पी. वी. बी. सुब्रह्मण्यन ने अपने प्रेरणादायी उद्बोधन में कहा कि “ज्ञान शाश्वत है, उसे पुनः समझने, आत्मसात करने और प्रयोग में लाने की आवश्यकता है।” उन्होंने बताया कि प्रकृति में ही सारा ज्ञान निहित है और मनुष्य का मस्तिष्क उसी का सर्वश्रेष्ठ उपहार है। उन्होंने शोध में सीमाओं से परे जाकर चिंतन करने पर बल दिया।संगोष्ठी का समापन लेखकगाँव की निदेशक विदूषी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने कहा कि “वैदिक परंपरा और ज्ञान का संरक्षण केवल सांस्कृतिक नहीं, बल्कि बौद्धिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। ”इस प्रकार ज्ञान, परंपरा और नवाचार के संगम से सम्पन्न यह अखिल भारतीय संगोष्ठी भारतीय वैदिक धरोहर के डिजिटल पुनरुत्थान की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम सिद्ध हुई।


