Prof. Dinesh Chamola honored
हिंदी के लब्ध-प्रतिष्ठित साहित्यकार, अनुवाद विशेषज्ञ एवं साहित्य अकादमी के बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित, प्रोफेसर (डॉ ) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के भोपाल स्थित प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थान, एम्प्री द्वारा सम्मानित किया गया । प्रो. चमोला का इसी सप्ताह राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित होने का यह द्वितीय अवसर है ।
देश के प्रमुख वैज्ञानिक संस्थान द्वारा आयोजित हिंदी दिवस समारोह में में मुख्य अतिथि के रूप में व्याख्यान देने के लिए प्रो. चमोला को भोपाल आमंत्रित किया गया था। हिंदी माह के अवसर पर आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं, हिंदी में श्रेष्ठ विज्ञान लेखन लेखन करने वाले वैज्ञानिकों तथा वर्षभर अपना सर्वाधिक प्रशासनिक कार्य हिंदी में करने वाले साठ से अधिक प्रथम, द्वितीय, तृतीय तथा सांत्वना पुरस्कार प्राप्त करने वाले पुरस्कार विजेताओं को प्रमाणपत्र सहित पुरस्कृत करने के उपरांत प्रो. चमोला ने ‘ वैज्ञानिक संस्थानों में हिंदी : शब्दावली व अनुवाद के संदर्भ में’ विषय पर प्रासंगिक संस्कृत, हिंदी, पंजाबी व अंग्रेजी् काव्यभिव्यंजनाओं के साथ धाराप्रवाह भाषण दिया जिसे श्रोताओं न दत्तचित व भावविभोर होकर सुना ।
प्रो. चमोला ने अक्षर व शब्दब्रह्म से अपना वक्तव्य प्रारंभ करते हुए हुए कहा कि संसार की वे सारी भाषाएं-बोलियां सरस्वती-स्वरूपा हैं, वंदनीय हैं, स्मरणीय हैं, जिनमें ज्ञान की वर्षा होती है; जो सद् चिंतन-लेखन, अपने शुचितापूर्ण परिवेश से उत्प्रेरक का कार्य कर लोक के कल्याण का कार्य करता है । उन्होंने राजभाषा के औपबंधिक स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए आज के युग में अनुवाद की अनिवार्यता को रेखांकित करते हुए कहा कि यह सदी अनुवाद की सदी है । आज हमारे पास बौद्धिक-विश्व बाजार से जो ज्ञान, विज्ञान व सूचना प्राप्त हो रही है, वह अनुवाद के अनुवाद का अनुवाद है । इस प्रेक्षागृह में बैठे हुए प्रत्येक बुद्धिजीवी, चाहे वह वैज्ञानिक है अथवा प्रशासनिक या फिर कोई और…..हम सब जन्मजात अनुवादक हैं । बिना अनुवाद के इस दुर्लभ जीवन का एक क्षण भी व्यतीत नहीं किया जा सकता ।
प्रो. चमोला ने कहा विज्ञान व प्रौद्योगिकी की उत्कृष्टता को भी बिना भाषा के, जन सामान्य तक नहीं पहुंचाया जा सकता । भाषा, विशेषकर हिंदी व अन्य भाषाओं के बिना भारतीय जान परंपरा का व्यापक प्रसार किसी भी रूप।में संभव नहीं है । विज्ञान के चमत्कार, उत्कर्ष व उपलब्धियों को जन जन तक पहुंचाने में हिंदी के वृहत संसार की अपूर्व भूमिका हो सकती है । प्रभावी हिंदी विज्ञान लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए मानक एव पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग आवश्यक है ।
इस अवसर पर प्रो. चमोला ने संस्थान की वार्षिक पत्रिका ‘सोपान’ का लोकार्पण भी किया । स्वागत भाषण कार्यकारी निदेशक, प्रो. असोकन पप्पू ने कहा कि पिछले दो घंटे से धाराप्रवाह प्रो. चमोला के व्याख्यान ने हमें इतना मंत्रमुग्ध कर दिया कि हम सब कुछ।भूल गई। देवभूमि हिमालय से आकर इन्होंने जो ज्ञान की पवित्र गंगा बहाई, इसके लिए हम जीवन भर आभारी रहेंगे । संचालन डॉ. मनीषा दुबे ने किया ।