Evaluation of the works of Shailesh
- देश के बहुचर्चित लेखक एवं साहित्य अकादमी के बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित
प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ के सृजन-मूल्यांकन पर आधारित श्रृंखला का बाईसवां (22वां) ऑनलाइन व्याख्यान दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के संयोजन में उनके चर्चित हिंदी प्रथम उपन्यास ‘ एक था रॉबिन’ पर केंद्रित रहा ।
समारोह के अध्यक्ष के रूप में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.) के कुलपति वी, प्रोफ़ेसर आर के वर्मा रहे, पुणे, महाराष्ट्र के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं समालोचक, प्रो. ओम प्रकाश शर्मा, विशिष्ट अतिथि रहे, जबकि डॉ. शशिकांत मिश्र ,सह आचार्य, हिंदी विभाग, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय, जम्मू (जम्मू एवं कश्मीर) आमंत्रित विद्वान के रूप में रहे ।
विशिष्ट अतिथि के रूप में पुणे, महाराष्ट्र के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं समालोचक प्रो ओम प्रकाश शर्मा ने कहा कि बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी प्रोफेसर दिनेश चमोला हिंदी के महान रचनाकार फणीश्वर नाथ रेणु की परंपरा के लोक साहित्यकार हैं । इनके उपन्यासों में आंचलिकता के साथ-साथ पर्वतीय संस्कृति, टूटते जीवन-मूल्य, पर्यावरण की चिंता, गांवों से पलायन, ह्रास होते हुए मानव मूल्यों के संरक्षण की चिंता का स्वर महीनता से दिखाई देता है । जल, जंगल और जमीन के टूटते मूल्यों को सहेजने की छटपटाहट, प्रमुख सशक्त पात्र रॉबिन के माध्यम से इसके अंतर्द्वंद्व को फेंटेसी के माध्यम से बखूबी चित्रित किया है कथाकार ने।
उन्होंने कहा कि प्रोफेसर डॉ.दिनेश चमोला ‘शैलेश’ एक सिद्धहस्त उपन्यासकार हैं । उनके ‘एक था राॅबिन’ उपन्यास की विशेषता यह है कि इस उपन्यास का नायक आठ साल का उपेक्षित बालक है जो हाशिए पर फेंकें गये लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। उपन्यासकार ने हाशिए के लोगों को केंद्र में लाने का काम किया है। उपन्यासकार को उजड़ते गांव, ग्राम्यांचलों की संस्कृति , संस्कार और जंगल के साथ परिवेश को बचाने की चिंता बेचैनी से उद्वेलित करती जा रही है।
इस प्रमुख उपन्यास की समीक्षा करते समय ज्ञात हुआ कि इस उपन्यास में उपन्यासकार ने बाल मनोविज्ञान, फेंटेसी शैली, मानवतावादी दृष्टिकोण को अधोरेखित किया है। साथ ही नायक को उत्तराखंड के सुदूर पर्वतीय गांव का निवासी बताया है । इसके लिए गढ़वाली भाषा का , वहां के जीवंत लोकगीतों और लोककथाओं का उपन्यास में अद्भुत संयोजन किया गया है जिससे उपन्यास में चार चांद लग गए हैं।

यह उपन्यास कागजी व कृत्रिम संसार की अपेक्षा प्रकृति के शाश्वत सान्निध्य, साधना से निसृत ज्ञान का पक्षधर हैं जो प्रकृति की मानिंद अंधेर व कल्याणकारी है। पर्वतीय सरोकारों से गहनता से जुड़े होने के कारण उपन्यास में समीचीन समस्याओं के साथ।साथ उनके व्यावहारिक समाधान भी सर्वथा उपस्थित मिलते हैं । यह बल मनोविज्ञान पर आधारित एक आशावादी सशक्त उपन्यास है जिसके लिए कथाकार का लेखन कौशल व लोक की संवेदनाओं को पिरोने का अंदाज अनूठा है ।
इन सारगर्भित अभिव्यक्तियों के लिए प्रोफेसर चमोला बधाई के पात्र हैं । वह अनेक विधाओं में कई दशकों से राष्ट्रीय स्तर पर अपने लेखन के लिए समादृत हैं । मुझे ऐसे कार्यक्रम में जुड़कर गर्व की अनुभूति हुई है ।
जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय, जम्मू के हिंदी विभाग के सह आचार्य, डॉ. शशिकांत मिश्र ने कहा कि कथाकार मने इतनी भावपूर्ण शैली में इसको लिखा है कि इसको पढ़ते-पढ़ते मेरे आंखों में आंसू आ गए । रचनाकार अपनी वैचारिक अभिव्यक्तियों का स्वप्न द्रष्टा होता है।
बाल में विज्ञान प्रकृति प्रेम जमीन जंगल और जीवन की चिंता करता हुआ है । यह उपन्यास मानवता के कल्याण का उद्घोषक है । जंगल बचेंगे तो प्रकृति बचेगी, प्रकृति बचेगी तो चिंतन और चैतन्य बचेगा, इस गहन रहस्यवादिता के संदेश को अपने में समाए यह मानवता के कल्याण का उत्कृष्ट व अनूठा उपन्यास है । मैं इसी प्रकार की रचनाओं को कालजयी रचनाएं मानता हूं जो प्रकृति को बचाने तथा भारतीय ज्ञान परंपरा को बचाने की चिंता करता है, वह लेखन उत्तम कोटि का और कालजयी होता है। निश्चित रूप से प्रोफेसर चमोला एक ऐसे उद्भट विद्वान हैं, जिन्होंने अपने उपन्यास में विश्व विजन की कल्पना को साकार किया है ।
यह एक दस्तावेज मात्र नहीं है, रचना, रचनाकार और आस्वादक की त्रिवेणी को एक साथ पिरोता है, इस उपन्यास में इसको महान रचना मानता हूं और अंतरंगता से प्रो.चमोला जी के उत्कृष्ट लेखन व चिंतन को नमन करता हूं जो पर्वत प्रदेश की उन पवित्र अनुभूतियां का बखूबी वी जीवंत चित्रण करके अपने लेखन को प्राणवान बना लेते हैं ।
प्रोफेसर चमोला बहुमुखी रचनाकार प्रतिष्ठित विद्वान है जिनकी अनेक रचनाओं का अवगाहन मैंने किया है ।
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कुलसचिव, प्रोफेसर मंजुनाथ ने कहा कि प्रोफेसर चमोला की आदर्शोन्मुखी साहित्य साधना हम सब युवाओं के लिए न केवल प्रेरक है, बल्कि अपने अभीष्ट को प्राप्त करने की दुर्लभ संजीवनी के समान है । एक निष्ठावान छात्र, शोधार्थी व हिंदी सेवी को, प्रोफेसर चमोला के दुर्लभ सांस्कृतिक व राष्ट्रीय चेतना से ओत-प्रोत साहित्य का अनुशीलन-अध्ययन अवश्य करना चाहिए, यह अनुष्ठान उसी का जीवंत रूप है । सफल संचालन भावना गौड़, लेखक परिचय सुश्री रीना ने किया तथा सरस्वती बंदना, कुमारी महालक्ष्मी अंबिग ने प्रस्तुत की ।