BJP victory in Delhi
दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने आखिरकार सत्ता हासिल कर ली है। 27 वर्षों बाद दिल्ली में भाजपा ने अपनी सत्ता की पुनर्स्थापना की है, जबकि इसके पहले कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) ने मिलकर इस राजनीति की दिशा को प्रभावित किया। दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के बाद भाजपा के लिए अब नई चुनौती खड़ी हो गई है, वहीं अरविंद केजरीवाल के लिए यह चुनावी हार एक कड़ा सबक साबित हो सकता है।
दिल्ली में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) का उभार अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ था। 2013 के विधानसभा चुनावों में आप ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर करके 28 सीटें जीतने में सफलता हासिल की। इसके बाद दिल्ली में आपने कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाई, लेकिन 49 दिन में ही केजरीवाल ने त्यागपत्र दे दिया। 2015 के चुनावों में आप ने 67 सीटें जीतकर सबको हैरान कर दिया था, हालांकि 2014 में मोदी की सरकार के सत्ता में आने से दिल्ली में राजनीति की दिशा में बदलाव दिखने लगा था।
2020 में आप ने फिर से शानदार जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग थी। भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे केजरीवाल समेत पार्टी के कई बड़े नेता जेल गए थे, जिससे पार्टी की छवि को भारी धक्का लगा। मुख्यमंत्री आवास पर 40 करोड़ से ज्यादा का खर्च करने से भी केजरीवाल की भ्रष्टाचार विरोधी छवि को नुकसान हुआ। यही कारण है कि 2020 की चुनावी जीत के बावजूद इस बार केजरीवाल के लिए राह आसान नहीं थी।
दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा ने आप के खिलाफ नई रणनीति अपनाई और कई लोकलुभावन घोषणाएं की। इसके साथ ही उसने खुद को जनता के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध साबित करने के प्रयास किए। यह भी देखा गया कि आप की रेवड़ी बांटने की राजनीति को अब अन्य दलों ने भी अपनाया, जिनमें कांग्रेस भी शामिल है। इस चुनावी परिणाम ने कांग्रेस के भविष्य को और भी धुंधला किया है, क्योंकि पार्टी लगातार तीसरी बार एक भी सीट जीतने में नाकाम रही।
आप के संस्थापक अरविंद केजरीवाल की छवि एक जुझारू नेता की रही है, लेकिन उनकी राजनीतिक शैली में कई विडंबनाएं भी रही हैं। उनका केंद्र सरकार से लगातार टकराव और संघर्ष की प्रवृत्ति ने दिल्ली में विकास की गति को प्रभावित किया। दिल्ली की सरकार के पास सीमित अधिकार हैं और केंद्र के सहयोग के बिना राज्य की दिशा में कोई बदलाव लाना संभव नहीं है। यही वजह थी कि केजरीवाल के राजनीतिक संघर्ष के कारण दिल्ली की जनता को विकास की अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पाईं और उनकी छवि को नुकसान पहुंचा।
भा.ज.पा. ने इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी की घोषणा के साथ चुनावी मैदान में उतरी। मोदी की प्रभावशाली चुनावी शैली और आरएसएस के साथ बेहतर सामंजस्य ने भाजपा को दिल्ली में सफलता दिलाई। इसके साथ ही भाजपा ने यह साबित कर दिया कि वह पार्टी के भीतर की गुटबाजी को नियंत्रित करके एकजुटता से चुनावी मैदान में उतरी है।
केजरीवाल का राजनैतिक भविष्य अब कड़ी चुनौती से गुजरने वाला है। दिल्ली में मिली हार से उनके नेतृत्व को झटका लगा है, लेकिन वे अब भी एक मजबूत राजनीतिक ताकत बने हुए हैं। इस हार के बाद यह सवाल उठता है कि क्या वे अपनी पुरानी छवि को पुनः स्थापित कर पाएंगे या फिर उन्हें अपने राजनीतिक तरीकों में बदलाव लाना होगा। इस चुनावी परिणाम से यह तो साफ है कि भाजपा ने अपनी रणनीति में बेहतर सामंजस्य और सहयोग दिखाया, वहीं केजरीवाल की व्यक्तिगत राजनीति और पार्टी के भीतर के संघर्ष ने आप की स्थिति को कमजोर किया।
आने वाले समय में केजरीवाल की राजनीतिक चुनौतियां और भी बढ़ सकती हैं। उन्हें अब दिल्ली में अपने खोए हुए समर्थन को फिर से हासिल करने के लिए नई रणनीति अपनानी होगी। सवाल यह है कि क्या वे इस झटके से उबर पाएंगे और भाजपा की राजनीतिक सफलता के सामने टिक पाएंगे, या फिर उनकी पार्टी की चमक अब फीकी पड़ जाएगी।