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मेडिकल स्टूडेंट्स की आत्महत्या: बढ़ते दबाव और मानसिक स्वास्थ्य की चिंताएँ बनीं गंभीर समस्या

suicide of medical student

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देहरादून। मेडिकल की पढ़ाई में दबाव व अन्य कारणों से देश भर के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में आत्महत्या के कई मामले सामने आ चुके हैं। मेडिकल स्टुडेंट्स की आत्महत्या से जुड़े ऐसे सभी मामले देश भर में चिंता का सबब बने हुए हैं। आत्महत्या से जुड़े इन मामलों के कारणों और परिस्थितयों पर एनएमसी सहित कई एजेंसिया व संस्थान अपने अपने स्तिर से चिंता जाहिर करते रहे हैं।

दि टाइम्स ऑफ इण्डिया की एक हालिया रिपोर्ट ने मेडिकल स्टूडेंट्स की आत्महत्या के कारणों से जुड़े कई सनसनीखेज़ पहलुओं को उजाकर किया है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) भी कई मंचों पर इस मुद्दे को लेकर चिंता जाहिर कर चुका है। आत्महत्या व मानसिक तनाव के मामलों की रोकथाम एवम् समाधान हेतु नेशनल मेडिकल कमीशन (एन.एम.सी.) ने नेशनल टास्क फोर्स का गठन किया है। एनएमसी ने 21 मई 2024 को एक पब्लिक नोटिस निकालकर यह जानकारी सांझा की है। नेशनल टास्क फोर्स मेडिकल स्टूूडेंटस के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का ध्यान रखेगी।

मेडिकल स्टूडेंट्स की आत्महत्या: बढ़ते दबाव और मानसिक स्वास्थ्य की चिंताएँ बनीं गंभीर समस्या

एसजीआरआर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एण्ड हैल्थ साइंसेज ने कॉलेज में हुए आत्महत्या प्रकरण पर विस्तृत जॉच की मांग रखी है। मेडिकल कॉलेज चाहता है कि आत्महत्या के सही कारणों का खुलासा हो। देश के सामने आत्महत्या के कारणों की सही जानकारी सामने आए। यह भी एक बड़ा सवाल है कि मेडिकल शिक्षण संस्थान, एनएमसी और मेडिकल की पढ़ाई से जुड़े सभी आवश्यक कारकों का दोबारा मूल्यांकन कर ऐसी व्यवस्था बन पाए जो मेडिकल कॉलेजों में स्टुडेंट्स के आत्महत्या के मामलों पर अंकुश लगा सके।

पिछले पॉच सालों में देश भर के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में 122 मेडिकल छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की है। आंकडे तस्दीक करते हैं कि इनमें से 64 एमबीबीएस और 58 पीजी के स्टूडेंट्स ने आत्महत्या की है। पिछले पॉच सालों में 1270 स्टूडेंट् ने मेडिकल की पढ़ाई बीच में ही छोड दी। अधिकांश मामलों में पढ़ाई का भारी दबाव, छात्र की खुद की मानसिक क्षमता से अधिक क्षमता के विषय को चुनना, मेडिकल की पढ़ाई में सामन्जस्य न बना पाना, सहित कई पारिवारिक व निजी कारण शामिल रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि मेडिकल की पढ़ाई कठिन होती है। मेडिकल एजुकेशन की रेग्यूलेट्री बॉडी नेशनल मेडिकल कमीशन के नियमों का कॉलेज और स्टुडेंट्स को सख्ती से पालन करना होता है।

पिछले दिनों देहरादून के एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज मंे मेडिकल छात्र डॉ देवेश गर्ग के आत्महत्या प्रकरण में भी कुछ ऐसे ही तथ्य सामने आ रहे हैं। मामले से सम्बन्धित आंतरिक व पुलिस जॉच प्रगतिशील है। श्री गुरु राम राय इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एण्ड हैल्थ साइंसेज़ आत्महत्या से जुड़े मामले की हर कोण से निष्पक्ष जॉच की मांग कर चुका है। मेडिकल कॉलेज द्वारा गठित आंतरिक जॉच कमेटी में भी कई तथ्य सामने आ चुके हैं। जॉच में सामने आ रहे तथ्यों को अलग अलग कोणों से आत्महत्या प्रकरण को जोड़कर देखा जा रहा है। पुलिस जॉच में भी उन तथ्यों को उपलब्ध करवाया गया है।

विशष्ेाज्ञों की नजर में आत्महत्या के कारणों को इस नजरिए से भी देखना जरूरी

1) मेडिकल में दाखिले के बाद स्टूडेंट किस मानसिक स्तर पर पढ़ाई को तैयार ?

2) क्या स्टूडेंट किसी मानसिक समस्या की परेशानी में तो नहीं है ?

3) कहीं वह मेडिकल की पढ़ाई को बोझ की तरह तो नहीं उठा रहा ?

4) एमबीबीएस और पीजी में एक बार प्रवेश के बाद कोर्स छोड़ना आसान नहीं

5) नियमानुसार कोर्स छोड़ने पर पूरी फीस जमा करने का प्रावधान, सामाजिक एवम् पारिवारिक दबाव व कई अन्य कारणों से कोर्स पूरा न कर पाने वाले स्टूडेंट्स हो जाते हैं डिप्रेशन का शिकार

6) कुछ मेडिकल कॉलेजों में एसा नियम भी है कि मेडिकल कॉर्स बीच में छोडने पर कुछ वर्षों तक वह स्टूडेंट उस मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए अयोग्य हो जाता है

 

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हर्षिता टाइम्स

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