गूणि नि जाणि
संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल
हर्षिता टाइम्स।
रिटणि रै जिंदगी उन्नी,पर! उमर बूणि नि जाणि रे।
बव्वा कटण माछौं कि तरौं,भलिक्वे सीखि हमुन
ख्यो भ्वन्न चखुलों कि तरौं, भलिक्वे सीखि हमुन
पर!भुयाँ मा हिटण छोड़ि दे ,अर मोल माटि को नि जाणि रे।
छौंदि का छबलाट मा हमुन,निछौंदि झणि किलै कैरि दे
मन रौंत्याळु कैरि हमुन, मनखि च्वाळा सुद्दि पैरि दे
पीणा छौं छमौंटुन छक्वे,पण! तीस क्यो बुझै नि जाणि रे।
बनि-बन्या धरम -दर्शनों को, सार नि बींगि हमुन
मनखि -मनख्यूँ मा झणि किलै? भेद कैरि द्यायि हमुन
मठ-मंदिर मा घुण्ड-मुण्ड टेकीं,पर! मैल मन कु ध्वे नि जाणि रे।