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विज्ञान और संस्कृत के समन्वय से ही वेद और ज्ञान का संरक्षण संभव : निशंक

Science and Sanskrit
Written by Subodh Bhatt

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देहरादून। देश के पहले लेखक गांव में शुक्रवार को महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन तथा नालंदा पुस्तकालय शोध एवं अनुसंधान केंद्र के संयुक्त तत्वाधान में तीन दिवसीय वैदिक संगोष्ठी शुरू हुई। अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी का उद्घाटन 31 अक्टूबर 2025 को लेखक गांव के सभागार में किया गया।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि विज्ञान और संस्कृत दोनों के समन्वय से वेद और ज्ञान को संरक्षित किया जा सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि संस्कृत, कंप्यूटर और विज्ञान के तीन अलग-अलग भाग हैं और अलग-अलग काम कर रहे हैं किंतु यह तीनों एक साथ जुड़कर जब काम करेंगे, तब ही हम वापस विश्व गुरु बन पाएंगे क्योंकि यह तीनों हिस्से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। उन्होंने कहा कि एआई हमारे लिए चुनौती भी है और एक अच्छा अवसर भी है और इसी बात को समझाते हुए उन्होंने कहा जितनी बड़ी चुनौती होती है, जब हम उसे लड़ते हैं तो उसकी उतनी ही बड़ी सफलता ही प्राप्त होती है।

महर्षि संदीपनी राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान के संयुक्त निदेशक ने संस्थान का परिचय देते हुए कहा कि उत्तराखंड में भी महर्षि वेद विद्या राष्ट्रीय प्रतिष्ठान अपने संस्थान की शाखा खोलना चाहता है जो कि उत्तराखंड सरकार के सहयोग से ही संभव है। डॉ. राजेश नैथानी ने कहा कि विज्ञान प्रक्रिया के “कैसे होने” का जवाब ढूंढता है जबकि वेद और अध्यात्म वह प्रक्रिया है जो “क्यों हुई” का जवाब ढूंढता है। प्रो. प्रदीप राय ने मुख्य वक्ता के रूप में पुस्तकालय के पांच सूत्रों को समझाते हुए कहा कि पुस्तकालय किस तरह से ज्ञान और साहित्य संरक्षण में अपना योगदान करता है। इसी के साथ पांडुलिपियों डिजिटलीकरण की दिशा में किए जा रहे काम के महत्व पर प्रकाश डाला।

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