Sridevtal
बदरीनाथ। भारत–तिब्बत (चीन) सीमा पर, श्रीबदरीनाथ धाम से लगभग 55 किलोमीटर दूर, उच्च हिमालय क्षेत्र में 18,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित (Sridevtal) श्रीदेवताल–माणा पास सीमा दर्शन यात्रा मंगलवार 14 अक्टूबर को संपन्न हो गई। घस्तोली से मानापास तक हाल में हुई बर्फवारी से सड़क मार्ग क्षति ग्रस्त होने से यात्रा को देवताल के स्थान पर नागताल में संपन्न करनी पड़ी। इस बार यात्रा मार्ग की विषामता को देखते हुए चमोली जिला प्रशासन ने सिर्फ 15 तीर्थ यात्रियों को ही अनुमति दी गयी थी। उत्तराखंड के वरिष्ठ नागरिक कल्याण परिषद के अध्यक्ष रामचंद्र गौड़ के नेतृत्व में यात्रा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर रामचंद्र गौड़ ने कहा कि हिमालय को नजदीक से देखने के लिए ऐसी यात्राओं का आयोजन जरूरी है। श्री गौड़ ने कहा कि वे प्रदेश के मुख्यमंत्री से अनुरोध करेंगे कि प्रतिवर्ष देवताल माना पास सीमा दर्शन यात्रा वरिष्ठ नागरिकों के लिए निशुल्क आयोजित की जाए।
Sridevtal : यात्रा के संयोजक प्रो. सुभाष चंद्र थलेडी ने कहा कि इस यात्रा की शुरुआत वर्ष 2015 में स्वर्गीय मोहन सिंह रावत ‘गांववासी’ जी, पूर्व कैबिनेट मंत्री, उत्तराखंड द्वारा की गई थी। अब यह यात्रा प्रति वर्ष उनके प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप भी आयोजित की जाती है।
प्रो. थलेडी ने कहा कि इस लोकविरासतीय लोकजात्रा को भविष्य में विस्तार दिया जायेगा और नीति घाटी के धार्मिक स्थलों को भी इससे जोडा जायेगा। इस यात्रा में टिम्मरसेंन की अमरनाथ गुफा और रिमखिम को भी शामिल किया जायेगा। उन्होंने कहा इस यात्रा का उद्देश्य सीमांत क्षेत्रों की लोक विरासत से जनसंपर्क स्थापित करना और देश की सीमाओं के दर्शन कर राष्ट्रभाव को सशक्त बनाना है।

यात्रा के संरक्षक पं. भास्कर डिमरी ने बताया कि श्रीदेवताल सरोवर पवित्र सरस्वती नदी का उद्गम स्थल है और यह सरोवर विश्व की सबसे ऊँचाई पर स्थित झील मानी जाती है। सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए इसकी पवित्रता कैलाश मानसरोवर के समान मानी जाती है। उन्होंने बताया कि यह क्षेत्र 1962 के बाद बंद था, परंतु स्व. ‘गांववासी’ जी के सतत प्रयासों से 2015 में जिला प्रशासन एवं सेना की अनुमति से सीमित यात्रियों के साथ इस यात्रा का पुनः शुभारंभ हुआ, जो अब प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है।
जाने-माने कवि डाॅ. नीरज नैथानी ने कहा कि सीमांत क्षेत्रों में स्थित सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह यात्रा लोक धरोहरों से आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रतीक है। डा. नैथानी ने इस अवसर पर अपनी कविता “क्या तुमने कभी किसी चट्टान से बात की है… सावधान ये हिमालय जड़ी बूटियों निर्माण निरंतर जारी है। ” द्वारा पर्यावरण संदेश दिया।
जोशीमठ के व्यवसायी और सामाजिक कार्यकर्ता राजेश नंबूरी ने कहा कि स्व. ‘गांववासी’ जी की यह दूरदृष्टि थी कि उन्होंने हिमालय की उपेक्षित धरोहरों को जनमानस से जोड़ने का बीड़ा उठाया। उन्होंने कहा कि यह यात्रा हिमालय की सुरक्षा का संदेश देती है। लखनऊ के गोमती सेवक राजेश राय ने कहा कि हिमालय को नजदीक से देखने से ही लगता है कि यह देवभूमि है।
इस वर्ष भी यात्रा कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी (14 अक्टूबर) को संपन्न हुई। स्व. ‘गांववासी’ जी द्वारा देवताल सरोवर के तट पर दक्षिणमुखी श्री हनुमान मंदिर भी स्थापित किया गया है।यह मंदिर विश्व का सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित हनुमान मंदिर है।
देवताल (Sridevtal) सरोवर का हमारी संस्कृति में विशेष स्थान है — यहीं से पवित्र सरस्वती नदी का उद्गम होता है, जो आगे चलकर बदरीनाथ धाम के समीप माना गाँव में अलकनंदा नदी में मिलती है।धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण इसी मार्ग से कैलाश मानसरोवर गए थे और उन्होंने देवताल सरोवर में स्नान किया था। तिब्बत स्थित थोलिंग मठ से बदरीनाथ मंदिर को चंवर, कस्तूरी आदि का प्रसाद इसी मार्ग से भेजा जाता था और भगवान बदरीनाथ का प्रसाद तिब्बत भेजा जाता था। जो 1962 से बन्द हो गया था।
यात्रा परंपरानुसार श्री बदरीनाथ जी के ध्वज (बदरीध्वज) की अगुवाई में प्रारंभ की गयी। बदरीनाथ के रावल ने यह ध्वज पंडित भास्कर डिमरी को हस्त्तगत कराया।
पूरी यात्रा में आईटीबीपी और भारतीय सेना ने मार्गदर्शन व सहयोग प्रदान किया गया। असम रेजिमेंट के द्वारा यात्रियों का स्वागत किया गया।
इस यात्रा में नवीन थलेडी, संजीव कंडवाल, जितेंद्र कुमार, राहुल, बिक्रम लाल शाह आदि यात्री सम्मिलित हुए। आयोजन समिति ने इसके लिए प्रशासन और सेना से आवश्यक अनुमति एवं सहयोग देने के लिए धन्यवाद किया।
यह लोकजात्रा नितांत धार्मिक एवं आध्यात्मिक यात्रा है, जिसका उद्देश्य हिमालयी लोकधरोहरों का संरक्षण और सांस्कृतिक चेतना का संवर्धन है। यह यात्रा स्व. मोहन सिंह रावत ‘गांववासी’ की स्मृति एवं श्रद्धांजलि स्वरूप संपन्न हुई।