Raghunath Kirti Hindi Service Award
देश का बहुचर्चित हिंदी साहित्यकार, साहित्य अकादमी के बाल साहित्य पुरस्कार विजेता प्रोफेसर (डॉ ) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ को हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में उल्लेखनीय योगदान हेतु केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,, रघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग (उत्तराखंड) के द्वारा ‘ रघुनाथ कीर्ति हिंदी सेवा सम्मान 2025’ देवप्रयाग में आयोजित समारोह में विश्वविद्यालय की सह निदेशक एवं अन्य पदाधिकारियों द्वारा प्रदान किया गया । डॉ. संयोजक डॉ.वी एस बरतवाल ने विस्तार से सम्मानित होने वाले प्रोफेसर चमोला जी का परिचय देते हुए कहा कि आप विभिन्न विधाओं में विगत विगत साढ़े चार दशकों से अपनी साधना में लीन है । आपने सात दर्जन से अधिक पुस्तकों तथा अपने मौलिक चिंतन और गुणवत्तापूर्ण सृजन से राष्ट्र में ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान निर्मित कर प्रदेश को गौरवान्वित किया है । आपकी अनेक पुस्तकें कई विश्वविद्यालयौन में संदर्भ पुस्तकों के रूप में तथा आपके बृहत कृतित्व पर देश के अनेक विश्वविद्यालयों में पीएच.डी. तथा एम फिल स्तरीय कई शोधोपाधियां प्राप्त हो चुकी हैं । इस सम्मान हेतु आए अठारह प्रविष्टियों में चयन समिति ने इन्हें सर्वथा योग्य पाया । आपको साहित्य अकादमी के प्रतिष्ठित बाल साहित्य पुरस्कार सहित देश के विभिन्न प्रतिष्ठानों से पचास से अधिक पुरस्कार प्राप्त हो रखे हैं । आज आपको सम्मानित कर हमारा विश्वविद्यालय स्वयं सम्मानित हो रहा है ।
अपने उद्बोधन में प्रो.चमोला ने देवभूमि उत्तराखंड को नमन करते हुए अपने खंडकाव्य ‘विदाई’ की चार भावुक पंक्तियों को सस्वर गाकर सभी श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया । गीत के बोल थे –
‘ चौखंबा की चल-चल कदी, बर्फ की श्वेत पाटी
बद्रीसे की छल-छलकदी, पुण्य भागीरथी हा !
कैलासू बी कल-कल कदी, डांड्यु घाटयों गजोंदी
हा ! गंगा की सुरपुर जनी, याद रोज तो ओंदी’
उन्होंने कहा कि देश में साहित्य सृजन के लिए सम्मान/पुरस्कार प्राप्त होते ही रहे हैं और होते रहेंगे किंतु यह सम्मान मेरी माटी का सम्मान होने के कारण मेरे लिए अति विशिष्ट है । इसी की स्मृतियों से प्रेरित होकर आज से पैंतालीस वर्ष पूर्व मैंने प्रथमतः गढ़वाली में ‘मौसमी खुदेडू’ गीत संग्रह लिखा था । इसलिए इसे ग्रहण करना मुझे अधिक महत्व का और गरिमा का एहसास दिला रहा है । रचनाकार को एक संत की तरह निश्छल भाव से अपनी साधना में निष्ठा से लीन रहना चाहिए
….देशकाल और परिस्थितियों और राजनीति से बेखबर । कभी न कभी, कहीं न कहीं कुछ सच्चे, अच्छे, पारखी और गुणवान चिंतक, विचारक उस लिखित साहित्य का नोटिस अवश्य लेकर मूल्यांकन करते हैं । निश्चित रूप से साहित्य साधना एक निष्काम तप है जिसमें सामाजिक विसंगतियों और सामाजिक सत्य को उद्घाटित करने का साहस हो, जो तपस्वी की भांति एकनिष्ठ साधना करता है, वही रचनाकार अपने लेखन से जीवित रह सकता है । सुखद अनुभूति होती है जब अपने रचना कर्म से अपनी पहचान देश-विदेश में होने लगते है ।
इसमें विश्विद्यालय के कई शोधार्थी, विद्यार्थी तथा विद्वान शिक्षक उपस्थित थे ।
विभिन्न विधाओं में सात दर्जन से अधिक पुस्तकों को लिखने वाले प्रो. चमोला, पिछले चवालीस (44) वर्षों से देश की अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए अनवरत लेखन करते रहे हैं । प्रो.चमोला हिंदी जगत में अपने बहु-आयामी लेखन व हिंदी सेवा के लिए सुविख्यात हैं । राष्ट्रीय स्तर पर साठ से अधिक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं । अभी तक अपनी उत्कृष्ट साहित्यिक सेवाओं के लिए आपको देश के विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा ‘सहित्यश्री’, ‘साहित्य भास्कर’, ‘विद्यासागर’, ‘युवा साहित्यकार सम्मान’, ‘साहित्य शिरोमणि सम्मान’, ‘उत्तरांचल रत्न सम्मान’ , ‘डॉ. गोविंद चातक सम्मान’, ‘उत्तराखंड शोध संस्थान सम्मान’, ‘बाल साहित्यकार सम्मान’ ‘संपादक शिरोमणि सम्मान’, ‘उत्कृष्ट बाल साहित्य पुरस्कार’, ‘हिंदी गौरव सम्मान’, ‘राष्ट्रीय राजभाषा शील्ड सम्मान’, ‘हिंदी भूषण सम्मान’, पंडित शिव शंकर दुबे स्मृति पुरस्कार’, ‘चंद्र कुंवर बर्त्वाल सम्मान’, ‘ परमार पुरस्कार’, तुरशन पाल पाठक बाल विज्ञान लेखन पुरस्कार’, ‘विवेकानंद सम्मान’, ‘राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान’,श्री श्याम सुधा परिमार्जन बाल साहित्य सम्मान’, ‘बाल साहित्य पुरस्कार’ (साहित्य अकादमी), ‘डॉ. राम जिनका किंकर सम्मान’, ‘डॉ. राष्ट्रबंधु सम्मान’ आदि अनेक सम्मान/पुरस्कार’ प्राप्त हुए हैं ।
ध्यातव्य है कि 14 जनवरी, 1964 को उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के ग्राम कौशलपुर में स्वर्गीय पं. चिंतामणि चामोला ज्योतिषी एवं माहेश्वरी देवी के घर मेँ जन्मे प्रो. चमोला ने शिक्षा में प्राप्त कीर्तिमानों यथा एम.ए. अंग्रेजी, प्रभाकर; एम. ए. हिंदी (स्वर्ण पदक प्राप्त); पीएच-डी. तथा डी.लिट्. के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी राष्ट्रव्यापी पहचान निर्मित की है। अभी तक प्रो. चमोला ने उपन्यास, कहानी, दोहा, कविता, एकांकी, बाल साहित्य, समीक्षा, शब्दकोश, अनुवाद, व्यंग्य, लघुकथा, साक्षात्कार, स्तंभ लेखन के साथ-साथ एवं साहित्य की विविध विधाओं में सात दर्जन से अधिक पुस्तकों में लेखन किया है । आपके व्यापक मौलिक साहित्य देश के अनेक विश्वविद्यालयों में पीएच-डी.तथा एम.फिल. स्तरीय कई शोध कार्य संपन्न हो चुके हैं तथा अनेक विश्वविद्यालयों में वर्तमान में चल रहे हैं ।
आपकी चर्चित पुस्तकों में ‘यादों के खंडहर, ‘टुकडा-टुकड़ा संघर्ष, ‘प्रतिनिधि बाल कहानियां, ‘श्रेष्ठ बाल कहानियां, ‘दादी
की कहानियां¸ नानी की कहानियां, माटी का कर्ज, ‘स्मृतियों का पहाड़, ‘क्षितिज के उस पार, ‘कि भोर हो गई, ‘कान्हा की बांसुरी, ’मिस्टर एम॰ डैनी एवं अन्य कहानियाँ,‘एक था रॉबिन, ‘पर्यावरण बचाओ, ‘नन्हे प्रकाशदीप’, ‘एक सौ एक बालगीत, ’मेरी इक्यावन बाल कहानियाँ, ‘बौगलु माटु त….,‘विदाई, ‘अनुवाद और अनुप्रयोग, ‘प्रयोजनमूलक प्रशासनिक हिंदी, ‘झूठ से लूट’, व मिट्टी का संसार’;’गायें गीत ज्ञान विज्ञान के’ ‘मेरी 51 विज्ञान कविताएँ’ तथा ‘व्यावहारिक राजभाषा शब्दकोश’ आदि प्रमुख हैं। देश के अनेक विश्वविद्यालयों में आपके साहित्य पर पीएच-डी.तथा एम.फिल. स्तरीय कई शोध कार्य संपन्न हो चुके हैं तथा अनेक विश्वविद्यालयों में वर्तमान में चल रहे हैं ।
आपकी चर्चित पुस्तकों में ‘यादों के खंडहर, ‘टुकडा-टुकड़ा संघर्ष, ‘प्रतिनिधि बाल कहानियां, ‘श्रेष्ठ बाल कहानियां, ‘दादी की कहानियां¸ नानी की कहानियां, माटी का कर्ज, ‘स्मृतियों का पहाड़, ‘क्षितिज के उस पार, ‘कि भोर हो गई, ‘कान्हा की बांसुरी, ’मिस्टर एम॰ डैनी एवं अन्य कहानियाँ,‘एक था रॉबिन, ‘पर्यावरण बचाओ, ‘नन्हे प्रकाशदीप’, ‘एक सौ एक बालगीत, ’मेरी इक्यावन बाल कहानियाँ, ‘बौगलु माटु त….,‘विदाई, ‘अनुवाद और अनुप्रयोग, ‘प्रयोजनमूलक प्रशासनिक हिंदी, ‘झूठ से लूट’, ‘गायें गीत ज्ञान विज्ञान के’ ‘मेरी 51 विज्ञान कविताएँ’ तथा ‘व्यावहारिक राजभाषा शब्दकोश’ आदि प्रमुख हैं। देश के अनेक विश्वविद्यालयों में आपके साहित्य पर पीएच-डी.तथा एम.फिल. स्तरीय कई शोध कार्य संपन्न हो चुके हैं तथा अनेक विश्वविद्यालयों में वर्तमान में चल रहे हैं ।
आपको उत्कृष्ट साहित्य सृजन एवं उल्लेखनीय हिदी सेवा हेतु देश-विदेश की पचास से अधिक संस्थाओं द्वारा सम्मान/पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।
आपके संपादन में प्रकाशित बहुचर्चित हिंदी पत्रिका ‘विकल्प’ ने राष्ट्रीय स्तर पर अपने महत्वपूर्ण विशेषांकों के माध्यम से अपनी अलग पहचान अर्जित की है। डॉ॰ चमोला ने भारत सरकार में संयुक्त निदेशक (हिन्दी) सहित विभिन्न सरकारी पदों पर कार्य किया है तथा पूर्व में आप भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून में राजभाषा के प्रमुख रहे हैं तथा वर्तमान में उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार में आधुनिक ज्ञान विज्ञान संकाय के पूर्व डीन, कुलानुशासक तथा भाषा एवं आधुनिक ज्ञान विज्ञान के अध्यक्ष रहे हैं । आप गढ़ विहार, फेज-1, देहरादून में रहते हैं ।
डॉ॰ चमोला ने देश के शताधिक विद्वानों के साक्षात्कार लिए हैं। अपने अनेक साक्षात्कार, रचनाओं का प्रसारण देश के 8 दूरदर्शन केंद्रों तथा 12 आकाशवाणी केंद्रों से प्रसारित हुए हैं । आप देश-विदेश की सैकड़ों पत्र-पत्रिकाओं के स्थापित लेखक हैं ।
आपके उपन्यास ‘टुकड़ा-टुकड़ा संघर्ष’ का कन्नड़ भाषा तथा अनेक रचनाओं का विभिन्न भारतीय देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद एवं प्रकाशन हुआ।