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हिमाचल के स्वप्नदृष्टा: वीरभद्र सिंह को पुण्यतिथि पर नमन

death anniversary of Virbhadra Singh
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death anniversary of Virbhadra Singh

  • राजा वीरभद्र सिंह और उनकी बहन मीना कुमारी की कहानी: एक भावनात्मक यात्रा

शीशपाल गुसाईं।
हिमाचल की हरी-भरी वादियों और उत्तराखंड की सांस्कृतिक समृद्धि के बीच बसी है एक ऐसी कहानी, जो रिश्तों की गहराई, स्वाभिमान की ताकत और समय के साथ बदलते जीवन की सैर कराती है। यह कहानी है राजा वीरभद्र सिंह और उनकी छोटी बहन मीना कुमारी की, जिनके जीवन के ताने-बाने में रियासतों की शान, देहरादून की पुरानी गलियाँ, और नैलबागी के शांत बगीचे समाए हैं। यह कथा केवल इतिहास की पन्नों तक सीमित नहीं, बल्कि यह उन रिश्तों की गर्माहट और मानवीय संवेदनाओं का आलम है, जो समय की धूल में भी अपनी चमक बरकरार रखते हैं।

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देहरादून की सैर और एक टक्कर से शुरू हुआ रिश्ता
सन् 1954 का वह दौर था, जब देहरादून की सड़कें अभी शहरी शोर से अछूती थीं। बलबीर रोड, जो आज भी डालनवाला की शांत गलियों में अपनी पहचान रखता है, तब और भी सुनसान हुआ करता था। राजा वीरभद्र सिंह, जो उस समय सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली में पढ़ाई कर रहे थे, अपनी नवविवाहिता पत्नी रत्ना कुमारी और छोटी बहन मीना कुमारी के साथ देहरादून की छुट्टियों का आनंद लेने आया करते थे। रत्ना कुमारी, जुब्बल की राजकुमारी, जिनके पिता की देहरादून के ईसी रोड पर शानदार कोठी थी, को यहाँ की लहलहाती हरियाली और लीची के बागान मोहित करते थे। मीना कुमारी, जो टिहरी गढ़वाल के शाही परिवार में विवाहित थीं, अपनी ननद रत्ना के साथ देहरादून की इन गलियों में हँसी-खुशी के पल बिताती थीं।

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एक दिन, ऐसी ही एक सैर के दौरान, मीना कुमारी ने जिद पकड़ ली कि वे गाड़ी चलाएँगी। ड्राइवर, जो शाही परिवार की इस जिद के आगे नतमस्तक था, ने उन्हें गाड़ी की चाबी सौंप दी। बलबीर रोड की ओर बढ़ती गाड़ी, उत्साह और अनुभवहीनता के बीच, सेठ गंगाधर तड़ियाल के भव्य गेट और दीवार से जा टकराई। धड़ाम की आवाज ने सन्नाटे को चीर दिया। सेठ गंगाधर और उनके पुत्र बाहर आए। गुस्सा तो आया, पर सामने शाही परिवार की गाड़ी, पगड़ीधारी ड्राइवर और सहायक, और मीना कुमारी की मासूमियत भरी मुस्कान ने उनका दिल पिघला दिया। मीना कुमारी ने अपना परिचय दिया, “मैं राजा वीरभद्र सिंह की छोटी बहन हूँ।” सेठ गंगाधर, जो टिहरी गढ़वाल के एक समृद्ध और सम्मानित व्यक्ति थे, ने न केवल उनका गर्मजोशी से स्वागत किया, बल्कि अपनी गाड़ी से उन्हें ईसी रोड की कोठी तक भिजवाया। चार दिन बाद, क्षतिग्रस्त गाड़ी को ठीक कराकर वापस भेज दिया। इस छोटी-सी घटना ने एक बड़े रिश्ते की नींव रखी।

सेठ गंगाधर तड़ियाल का परिवार और नया रिश्ता
सेठ गंगाधर तड़ियाल का परिवार टिहरी गढ़वाल में अपनी समृद्धि और रुतबे के लिए जाना जाता था। पुरानी टिहरी में उनकी पोस्ट ऑफिस और टेलीफोन की इमारतें थीं, दोबाटा में तीन मंजिला भवन था, और सिराई सहित दस कोठियाँ उनकी संपत्ति का हिस्सा थीं। चंबा के नैलबागी में उनका 100 एकड़ का बगीचा था, जहाँ कभी 200 लोग खेती और बागवानी में जुटे रहते थे। देहरादून में बलबीर रोड और नेहरू कॉलोनी में उनकी विशाल जमीनें थीं, जहाँ भैंसें चरती थीं और हुक्का गुड़गुड़ाने की परंपरा जीवित थी। सेठ जी के तीन बेटे थेकृराजेंद्र सिंह तड़ियाल, वीरेंद्र सिंह तड़ियाल, और जितेंद्र सिंह तड़ियाल। तीनों भाई सेंट जोसेफ एकेडमी, देहरादून के गिने-चुने 11 छात्रों में से थे। वीरेंद्र सिंह, जो दार्जिलिंग के टी-एस्टेट में मैनेजर थे, उस समय के हिसाब से एक रुतबेदार पद पर थे। जब वीरभद्र सिंह और रत्ना कुमारी ने सेठ गंगाधर को चाय पर आमंत्रित किया, तो बातचीत में उनके परिवार की शालीनता और संस्कार उभरकर सामने आए। मीना कुमारी को वीरेंद्र सिंह भा गए। इस तरह, एक गाड़ी की टक्कर ने दो परिवारों को रिश्ते के बंधन में बाँध दिया।

मीना कुमारी और वीरेंद्र का जीवन
मीना कुमारी और वीरेंद्र सिंह का विवाह एक नए युग की शुरुआत थी। दोनों देहरादून और नैलबागी के बीच अपना समय बिताते। नैलबागी, जहाँ घोड़ों और पालकी से पहुँचा जाता था, उनके लिए एक शांत आशियाना था। वहाँ की ताजी हवा, बगीचों की हरियाली, और खेतों की मेहनत उनके जीवन का हिस्सा थी। देहरादून में बलबीर रोड पर उनकी संपत्ति थी, जहाँ पारंपरिक जीवनशैली की झलक दिखती थी। लेकिन समय के साथ, सेठ गंगाधर के निधन और फिर वीरेंद्र सिंह के असमय चले जाने के बाद, परिवार की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी। बलबीर रोड की विशाल संपत्ति धीरे-धीरे हाथ से निकल गई। मीना कुमारी और वीरेंद्र का बेटा रविंद्र सिंह तड़ियाल, जो अब लगभग 54 वर्ष के होंगे, अपने मामा राजा वीरभद्र सिंह की छत्रछाया में पले। वीरभद्र ने उन्हें पुलिस में सब-इंस्पेक्टर बनवाया, लेकिन कठिन प्रशिक्षण रविंद्र के बस का नहीं था। वे वापस घर लौट आए। मीना कुमारी ने रविंद्र की शादी किन्नौर की एक लड़की से की, और उनका परिवार एक सादगी भरा जीवन जीने लगा।

2004 की वह यादगार हिमाचल यात्रा
सन् 2004 में, जब पुरानी टिहरी से नई टिहरी आए चार साल बीत चुके थे, एक ऐसी घटना घटी, जो इस कहानी को और गहराई देती है। मेरे वरिष्ठ मित्र वीरेंद्र सिंह चौहान, जिन्हें प्यार से पंचू भाई कहते थे, ने मुझे किन्नौर में मीना कुमारी के रिश्तेदार की शादी में चलने का न्योता दिया। यह मेरी पहली हिमाचल यात्रा थी, और उत्साह अपने चरम पर था। दो मारुति 800 गाड़ियों में हम निकले। एक गाड़ी में मैं, पंचू भाई, और उत्तम नेगी थे, तो दूसरी में मीना कुमारी, रविंद्र, उनकी पत्नी, और दो छोटे बच्चे। हिमाचल की सीमा शुरू होते ही पांवटा साहिब में एक पुलिस क्षेत्राधिकारी ने मीना कुमारी का स्वागत किया। यह मुलाकात व्यक्तिगत थी, और ऐसा लगा जैसे राजा वीरभद्र सिंह ने अपनी बहन के लिए कोई संदेश भिजवाया हो। चाय-पानी के बाद हम आगे बढ़े। नारकंडा में रात्रि विश्राम हुआ। मीना कुमारी और वीरभद्र सिंह की दूसरी पत्नी प्रतिभा सिंह के बीच रिश्तों में खटास थी। पहली पत्नी रत्ना कुमारी से उनकी अच्छी बनती थी, लेकिन रत्ना के निधन के बाद प्रतिभा से उनकी दूरी बढ़ गई थी। शिमला में वीरभद्र से मुलाकात का कार्यक्रम था, लेकिन मुख्यमंत्री होने के नाते उनकी व्यस्तता के कारण यह रद्द हो गया। मीना कुमारी ने प्रतिभा से मिलने की इच्छा नहीं दिखाई, और उनकी गाड़ी सीधे किन्नौर की ओर बढ़ गई।

किन्नौर की शादी और सराहन का महल
किन्नौर की घाटी में सतलुज नदी के किनारे बसी सड़कों से गुजरते हुए हम रामपुर और फिर भावानगर पहुँचे। भावानगर के गेस्ट हाउस में लंच और विश्राम के बाद, हम किन्नौर के एक गाँव में शादी समारोह में शामिल हुए। वहाँ का रिवाज अनोखा थाकृ2004 में भी गाँव की लड़कियों को यह नहीं पता होता था कि बारात किसके लिए आई है। स्वागत और सत्कार में कोई कमी नहीं थी। रात भर उत्सव चला, और अगली सुबह हम सराहन के लिए निकले। सराहन में वीरभद्र सिंह का महल था। मीना कुमारी ने अपनी मधुर आवाज में चौकीदार को पुकारा। चौकीदार ने उन्हें देखा, और उसकी आँखों में खुशी के आँसू छलक आए। लंबे समय बाद वह अपनी मालकिन से मिल रहा था। महल के विशाल हॉल में इंदिरा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, और राजीव गांधी की आदमकद तस्वीरें टंगी थीं। यह दर्शाता था कि वीरभद्र सिंह का गांधी परिवार के प्रति कितना सम्मान था। इमरजेंसी के दौरान वीरभद्र ने इंदिरा का साथ दिया था, और बदले में इंदिरा ने उन्हें हिमाचल की सत्ता सौंपी थी। महल के बाद हम सराहन के भव्य मंदिर गए, जो बुशहर रियासत की कुलदेवी का स्थान है। यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ और मंदिर की शांति मन को छू गई। सराहन, एसएसबी की ट्रेनिंग के लिए भी प्रसिद्ध है, एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक केंद्र है।

रामपुर
लौटते हुए हमने रामपुर बुशहर रियासत का हेडक्वार्टर देखा, जो कभी एक शक्तिशाली केंद्र था। बुशहर रियासत, जो श्रीकृष्ण के वंशज होने का दावा करती है, की 121वीं पीढ़ी के राजा पदम सिंह थे, जिनके बेटे वीरभद्र सिंह थे। शिमला में पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस में रुकने के बावजूद मीना कुमारी अपने भाई से नहीं मिल पाईं। यह उनके रिश्ते की उस गहराई को दर्शाता है, जो शब्दों से परे थी।

मीना कुमारी और रविंद्र का सादगी भरा जीवन
समय ने तड़ियाल परिवार की संपत्ति को छीन लिया। बलबीर रोड की विशाल जमीनें बिक गईं, और मीना कुमारी का परिवार एक साधारण जीवन की ओर बढ़ गया। वीरभद्र सिंह ने अपनी बहन की स्थिति को समझा और उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी से बात की। पंचू भाई की मदद से मीना कुमारी को पुरानी टिहरी की संपत्ति के बदले देहरादून के बंजारावाला में 200 वर्ग मीटर जमीन मिली। वीरभद्र ने शिमला से आर्किटेक्ट भेजकर हिमाचल की वास्तुकला से प्रेरित एक खूबसूरत मकान बनवाया, जिसमें लकड़ी और संगमरमर का खूबसूरत मिश्रण था।

लेकिन रविंद्र इस मकान का रखरखाव नहीं कर सके। वे नैलबागी में अपनी बकरियों और गायों के साथ एक सादगी भरा जीवन जीते हैं। मीना कुमारी कभी बंजारावाला में रहती हैं, तो कभी नैलबागी में अपने बेटे के पास चली जाती हैं। रविंद्र ने कई बार अपने मामा के कहने पर हिमाचल में बसने का प्रस्ताव ठुकराया। उन्हें अपना उत्तराखंडी घर ही पसंद था। बुरे दौर में उन्होंने लौण-रोटी खाई, लेकिन कभी यह नहीं कहा कि वे छह बार के मुख्यमंत्री के भांजे हैं। मीना कुमारी भी अपने भाई के रुतबे का सहारा लेने की बजाय स्वाभिमान के साथ जीती रहीं।

वीरभद्र सिंह का परिवार और उनकी विरासत
वीरभद्र सिंह की पहली पत्नी रत्ना कुमारी से तीन बेटियाँ थीं, जिनमें से एक, अभिलाषा कुमारी, मणिपुर की मुख्य न्यायाधीश रहीं हैं। दूसरी पत्नी प्रतिभा सिंह से एक बेटा विक्रमादित्य सिंह , वर्तमान में कैबिनेट मंत्री, हिमाचल सरकार और एक अपराजिता सिंह बेटी हैं। बेटा अब 123वाँ राजा है, और बेटी की शादी पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री राजा कैप्टन अमरिंदर सिंह की बेटी जय इंदर कौर के बेटे अंगद से हुई है। मीना कुमारी का अपने भाई से गहरा रिश्ता था, लेकिन वे कभी परिवार के अन्य रिश्तेदारों के सामने गिड़गिड़ाने की मुद्रा में नहीं रहीं। शिमला के एक बड़े अंग्रेजी स्कूल में पढ़ीं मीना कुमारी एक स्वाभिमानी और सम्मानित महिला हैं। हिमाचल के स्वप्नदृष्टा वीरभद्र सिंह जी को चौथी पुण्यतिथि पर सादर नमन!

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