उत्तराखंड साहित्य

भाषा के काम सरकार के भरोसे नहीं हो सकते, समाज को आगे आना होगा : नरेंद्र सिंह नेगी

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Written by Subodh Bhatt
  • अधीनस्थ चयन सेवा आयोग में स्थानीय भाषाओं को तरजीह दी जाए : धस्माना
  • गढ़वाली को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए : शास्त्री

देहरादून। विनसर प्रकाशन के रजत जयंती वर्ष के अवसर पर मातृभाषा गढ़वाली के लेखकों की आज राजधानी में एक गोष्ठी आयोजित की गयी। गोष्ठी में गढवाली में प्रकाशित प्राथमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रम की पुस्तकों धगुलि , हंसुली , छुबकी , पैजबी और झुमकी के लेखकों तथा इन पुस्तकों में चित्रांकन करने वाले चित्रकारों ने प्रतिभाग किया। गोष्ठी में लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी द्वारा हिंदी एवं अंग्रेजी में प्रकाशित उत्तराखंड ईयर बुक जारी की गई।
बैठक में लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि मातृभाषा गढ़वाली में पठन-पाठन से भाषा आगे बढ़ेगी। बच्चों को अपनी भाषा में पठन सामग्री उपलब्ध होगी तो वे अपनी भाषा के महत्वपूर्ण पक्षों को भी जान सकेंगे। इसके लिए गढ़वाली भाषा बोलने वाले समाज को आगे आना होगा। भाषा के काम सरकार के भरोसे नहीं हो सकते इसके लिए समाज को आगे आना होगा।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में निरंतर लिखे जाने की आवश्यकता है। लिखे जा रहे साहित्य का मानकीकरण आने वाले समय मे विद्वान करते रहेंगे अभी तो निरंतर कार्य किये जाने की आवश्यकता है।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए इतिहासकार डॉ योगेश धस्माना ने कहा कि अधीनस्थ चयन सेवा आयोग में स्थानीय भाषाओं को तरजीह देने से जहाँ परीक्षार्थी अपनी भाषा को पढ़ेंगे वहीं भाषा रोजगार से भी जुड़ जाएगी। उन्होंने कहा कि जब भाषा रोजगार से जुड़ेगी तो उसकी उपयोगिता बढ़ जाती है और भाषा में आवश्यकतानुसार प्राण प्रतिष्ठा भी हो जाती है।
गोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शास्त्री सेमवाल ने कहा कि भाषाएँ चुनाव जीतने का माध्यम नहीं हैं इनका उपयोग सिर्फ़ के लिए न हो लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो रहा है। उत्तराखंड में भाषाओं को लेकर संजीदगी से कार्य किये जाने की आवश्यकता है तभी भाषाएं दीर्घजीवी होंगी। उन्होंने कहा कि अपनी भाषाओं को बचाने की पहल अपने घर से करने की आवश्यकता है तभी भाषा जिंदा रह सकती है।
इस अवसर पर गढवाली साहित्यिकार गिरीश सुन्द्रियाल ने कहा कि मातृभाषा गढवाली का प्राथमिक कक्षाओं का पाठ्यक्रम बहुत ही बेहतरीन है लेकिन दुर्भाग्य से इसे अभी तक पूरे क्षेत्र में शुरू नहीं किया जा सका है। गोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए डॉ जगदम्बा प्रसाद कोटनाला ने कहा कि भाषा को समृद्ध किये जाने के दृष्टि से लेखकों द्वारा निरंतर लेखन किया जाना चाहिए।
गढवाली कवियित्री बीना बेंजवाल ने कहा कि प्राथमिक कक्षाओं के लिए तैयार किया गया गढवाली भाषा का पाठ्यक्रम एनसीईआरटी और एससीईआरटी के मानकों पर खरी हैं और पुस्तकों की पाठ्य सामग्री बहुत ही उत्तम है। इस गोष्ठी में इस पाठ्यक्रम को तैयार करने वाले लेखकों और चित्रकारों को विनसर प्रकाशन द्वारा सम्मान राशि प्रदान की गयी। गोष्ठी का संचालन गणेश खुगशाल गणी ने किया।

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