साहित्य

शिव- शक्ति अनुबंध ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप द्वारा रचित

शिव- शक्ति
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शिव- शक्ति

(चौपई छ्न्द)

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शिव- शक्ति

पावन सावन का है मास
कण-कण शिव -गौरा आभास।।
सति करे निज देह का होम।
रोये शिव संग भूमि, व्योम।।

शिव के नैनों झरता नीर ।
सति से दूरी कितनी पीर!!
लेकर गिरिजा का नव रूप।
सति जन्मी फिर सुभग,अनूप।।

सावन में व्रत बड़ा कठोर।
गिरिजा रात न देखे भोर ।।
बीत गए थे वर्ष हज़ार ।
कंद – मूल ही था आहार।।

सौ वर्षों तक केवल शाक ।
पंच तत्व भी हुए अवाक।।
फिर जल , वायु का आहार ।
महातपा का पावन प्यार।।

बेल की खाकर सूखी पात ।
गौरी बिता रही दिन रात ।।
भूखी रहती सब कुछ छोड़।
शिव के चरणों से मन जोड़।।

तन – मन से गिरिजा है हेम ।
युगों – युगों शिव गौरी प्रेम ।।
सूख रहा गिरिजा का गात।
शिव का व्रत,तप निशा- प्रभात।।

बनी अपर्णा नियम कठोर।
आशुतोष भी भाव -विभोर।।
महादेव का पा आशीष।
मिला गौरी को अपना ईश।।

शिव को अति प्रिय सावन माह
सति शिव पुनर्मिलन की चाह।।
युगों- युगों के खुलते बंध ।
शिव -शिविका अद्भुत अनुबंध।

ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप (देहरादून)

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