शिव- शक्ति
(चौपई छ्न्द)

शिव- शक्ति
पावन सावन का है मास।
कण-कण शिव -गौरा आभास।।
सति करे निज देह का होम।
रोये शिव संग भूमि, व्योम।।
शिव के नैनों झरता नीर ।
सति से दूरी कितनी पीर!!
लेकर गिरिजा का नव रूप।
सति जन्मी फिर सुभग,अनूप।।
सावन में व्रत बड़ा कठोर।
गिरिजा रात न देखे भोर ।।
बीत गए थे वर्ष हज़ार ।
कंद – मूल ही था आहार।।
सौ वर्षों तक केवल शाक ।
पंच तत्व भी हुए अवाक।।
फिर जल , वायु का आहार ।
महातपा का पावन प्यार।।
बेल की खाकर सूखी पात ।
गौरी बिता रही दिन रात ।।
भूखी रहती सब कुछ छोड़।
शिव के चरणों से मन जोड़।।
तन – मन से गिरिजा है हेम ।
युगों – युगों शिव गौरी प्रेम ।।
सूख रहा गिरिजा का गात।
शिव का व्रत,तप निशा- प्रभात।।
बनी अपर्णा नियम कठोर।
आशुतोष भी भाव -विभोर।।
महादेव का पा आशीष।
मिला गौरी को अपना ईश।।
शिव को अति प्रिय सावन माह ।
सति शिव पुनर्मिलन की चाह।।
युगों- युगों के खुलते बंध ।
शिव -शिविका अद्भुत अनुबंध।
ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप (देहरादून)