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वाध यंत्रों में छिपी हुई प्रतिभाओं के लिए देहरादुन में होगा खुला प्रस्तुतिकरण

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देहरादून। उत्तराखंड में पारम्परिक वाध यंत्रों में छिपी प्रतिभा को पहचान दिलाने का बीड़ा देहरादून के जाने माने वरिष्ठ फिजिशियन डॉ केपी जोशी ने उठाया है। उनकी इस मुहिम को सरकार का सहयोग भी मिल गया है। राज्य के 14 जिलों से छिपी प्रतिभाओं को पहचान दिलाने के लिए आगामी 23 और 24 अक्टूबर को कार्यक्रम है। आगामी 23 अक्टूबर को रेंजर्स ग्राउंड में वाद्य यंत्र से जुड़े लोगों के बीच मैदान में प्रस्तुतिकरण होगा। जबकि 24 अक्टूबर को नगर निगम के टाउन हॉल में मुख्यमंत्री के समक्ष बेहतर प्रदर्शन करने वालों का प्रस्तुतीकरण होगा।
रविवार को प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में चारधाम अस्पताल के संचालक डॉ केपी जोशी ने बताया कि उत्तराखण्ड राज्य में ऐसी प्रतिभाओं को चिन्हित कर उन्हें आगे लाने का एक प्रयास किया जा रहा है। प्रदेश के प्रत्येक जिले से ऐसी प्रतिभाओं को चिन्हित किया गया है। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से दूर-दराज के क्षेत्रों से ऐसी प्रतिभाओं को ढूंढकर लाया गया है, जिन्हें अपनी प्रतिभा का राज्य, राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन का अभी तक अवसर नहीं मिला है। मसलन कोई विशिष्ट पहचान नहीं मिली है।
ये प्रतिभागी किसी विशिष्ट कला जैसे परम्परागत वाद यंत्रों, संगीत, सांस्कृतिक परम्परा, शिल्प एवं कारीगरी से जूड़े होंगे। साथ ही रिंगाल, लकड़ी, ऊन, नेचुरल फाईवर, ताम्र आदि का काम करते हो। उन्होंने बताया कि जिला स्तर पर एक समिति बनी है। जिसने प्रतिभाओं को विभिन्न श्रोतों से चिन्हित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि आगामी 23 अक्टूबर को पारंपरिक वाद यंत्र से जुड़े लोगों के बीच रेंजर्स मैदान में प्रस्तुति होगी। जिसमें बेहतर प्रदर्शन करने वालों का चयन होगा। जज के तौर पर लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी जी और प्रीतम भरतवाण जी के अलावा दो सांस्कृतिक पत्रकार भी होंगे। इस प्रस्तुतीकरण के बाद बेहतर प्रदर्शन करने वाले चिन्हित किये जायेंगे। जिसके बाद आगामी 24 अक्टूबर को नगर निगम के टाउन हॉल में मुख्यमंत्री के समक्ष बेहतर प्रदर्शन करने वालों का प्रस्तुतीकरण किया जाएगा। डॉक्टर केपी जोशी ने बताया कि वाद यंत्र से जुड़े लोग जो भी पहाड़ से आएंगे। उन सभी भी का सारा खर्चा हमारी तरफ से होगा। उनके रहने खाने का सब इतजाम होगा। सभी को मानदेय दिया जाएगा। इसके अलावा बेहतर प्रदर्शन करने वालों को रोजगार जाएगा। उन्होंने बताया कि इसका उद्देश्य यह है कि उत्तराखंड की जो संस्कृति लुप्त हो रही है। उसे आगे बढ़ाने के लिए यह कार्यक्रम किया जा रहा है। इस अवसर पर उधोग विभाग के निदेशक सुधीर नौटियाल भी मौजूद रहे।

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