साहित्य

प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर सोलहवां (16वां) राष्ट्रीय पाक्षिक व्याख्यान संपन्न

National Fortnightly Lecture
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National Fortnightly Lecture

विभिन्न विधाओं में सात दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखने वाले, साहित्य अकादमी के बाल साहित्यबाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित, चर्चित लेखक प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ ने जहां धनौरी में भारत सरकार,शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में जनसंचार शब्दावली : विशिष्टता एवं अनुप्रयोग ‘ विषय पर प्रभावी व्याख्यान दिया, वहीं दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा , मद्रास के संयोजन में प्रख्यात हिंदी साहित्यकार ‘प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर आयोजित पाक्षिक व्याख्यानमाला का सोलहवां (16वां) ऑनलाइन व्याख्यान उनके चर्चित कविता संग्रह ‘स्मृतियों का पहाड़’ विषय पर केंद्रित रहा ।

समारोह के अध्यक्ष के रूप में डॉ बी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू (मध्य प्रदेश) के कुलपति, प्रोफ़ेसर रामदास जी आतराम रहे, सरदार बल्लभभाई पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर, गुजरात के हिंदी विभागाध्यक्ष, प्रो. दिलीप मेहरा, विशिष्ट अतिथि रहे, जबकि डाक पत्थर (उत्तराखंड) के युवा समालोचक, प्रो.ए के अवस्थी, आमंत्रित विद्वान के रूप में रहे ।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति,प्रोफ़ेसर रामदास जी आतराम ने कहा कि हिंदी के चर्चित साहित्यकार, प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा,चेन्नई जैसी देश की प्रतिष्ठित संस्था द्वारा अबाध गति से क्रमशः पंद्रह पाक्षिक व्याख्यानों का आयोजन अपने आप में गौरवपूर्ण है । प्रो.आतराम ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है और कविता जीवन का संगीत । जीवन रूपी संगीत की अनेक सुर-ताल एवं अवस्थाएं । काव्य इस सुर-ताल और संगीत की जटिलताओं को सरलीकृत कर जन सामान्य की चेतना के स्तर पर ले जाने का सहज माध्यम माना जाता है ।

प्रोफेसर दिनेश चंद्र चमोला जी का यह काव्य संग्रह, जिसकी आज हम सभी चर्चा करने, उसे समझने के लिए एकत्रित हुए हैं, गागर में सागर के समान है…. और ‘ गाएं गीत ज्ञान विज्ञान के’ नामक विज्ञान कविता संग्रह पर साहित्य अकादमी, भारत सरकार के बाल साहित्य पुरस्कार से भी आप समादृत हैं । प्रोफेसर चमोला जी ने इस काव्य के माध्यम से साहित्य, समाज, जीवन एवं संस्कृति के तमाम अनुभवजन्य पुष्पों को एकत्र कर जिस रूप में प्रस्तुत किया है, वह आपके पांडित्य का सुंदर उदाहरण है । प्रोफेसर चमोला जी का अकादमिक एवं लेखकीय योगदान हिंदी एवं गढ़वाली साहित्य में मील का पत्थर साबित होगा ।

साहित्य की अमूमन सभी विधाओं के मूर्धन्य, ऐसे प्रोफेसर चमोला जी के कविता संग्रह ‘स्मृतियों का पहाड़’ से एक कविता जीवन का संदर्भ कुछ ऐसा है जिसके माध्यम से वह बता रहे हैं कि जीवन का छोटा सा छोटा या बड़ा होना उतना मायने नहीं रखता, बल्कि जीवन का अर्थ दीर्घगामी और सार्थकतापूर्ण होने का प्रत्यक्ष ऊ है । प्रोफेसर चमोला
‘शैलेश’ जी का साहित्यिक योगदान, जीवन के उन्हीं दीर्घगामी एवं सार्थक क्षणों को प्रकट करता उदाहरण है । ऐसे विद्वान की काव्य संग्रह पर आजहो रहा यह आयोजन कई अर्थों में सार्थक रहा है ।

प्रोफेसर चमोला केवल उत्तराखंड में ही नहीं, अपितु समूचे भारतवर्ष में अपनी उत्कृष्ट रचनाधर्मिता के लिए सुविख्यात हैं । विगत 43 वर्षों से प्रो.चमोला की यह अखंड साधना इस बात का प्रमाण है कि वह एक सुधी अध्येता के साथ-साथ एक भावप्रवण कवि, जीवंत कथाकार, स्तंभ लेखक, साक्षात्कारकर्ता एवं चर्चित संपादक भी हैं । उन्होंने देश के प्रख्यात पत्रकारों, लेखकों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों तथा अनेक विभूतियों के अनेक साक्षात्कार भी लिए हैं जो आज से तीन-चार दशक पूर्व देश की असंख्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं । वह देश के कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रखर परिचर्चाएं संयोजित करने के लिए भी विख्यात रहे हैं ।

विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभनगर (गुजरात) के हिंदी विभागाध्यक्ष , प्रो. दिलीप मेहरा ने कहा कि प्रोफेसर चमोला अपनी साहित्यिक ऊर्जा और विशिष्ट उपलब्धियों के कारण समूचे देश में समादृत हैं । इस संग्रह की समूची कविताएं प्रकृति प्रेम, मानव-मूल्य, अनमोल जीवन, सृष्टि और आध्यात्मिक चिंतन के साथ-साथ बदलते मानव मूल्य के संरक्षण की चिंता करती कविताएं हैं । ये कविताएं सच्चे मानव और सच्चे और उत्कृष्ट समाज की चिंता करती कविताएं हैं । बदलते हुए मानव मूल्यों के संरक्षण की चिंता करती ये कविताएं आम आदमी की पीड़ा तथा नैतिक मूल्यों के साथ-साथ, पर्वतीय जीवन के सरोकारों से भरी पड़ी हैं । इसमें पहाड़ की स्त्री, पहाड़ के जीवन, वर्तमान के भीतर अतीत में पुनरागमन की स्मृति संकेत है । इस संग्रह में पर्यावरण संरक्षण, ह्रास होते मानव मूल्यों को बहुत महीनता से चित्रित करती हैं।

आमंत्रित विद्वान के रूप में प्रो अरविंद कुमार अवस्थी ने कहा कि प्रोफेसर चमोला का यह कविता संग्रह कई मायनों में अद्भुत है । इसमें कालबोध, ऐतिहासिकता व संवेदनात्मक चित्रात्मकता कई रूपों में बखूबी दिखाई देता है । इसमें प्रमुख रूप से नश्वरता बोध है । शब्दों के रूपक, मिथकीय चेतना, ऐतिहासिकता के माध्यम से चाक्षुष बिंब, औपम्य जैसी बड़ी शब्द शक्तियों का चमत्कार इस कविता संग्रह में मिलता है । कवि कल्पना को कविता के सरोकार, अनुभूति अनेक उपकरणों, उद्धरणों के साथ करते हैं । इतिहास के साथ स्मृतियों का । सामंजस्य या पात्रता दिखाई देता है आपकी कविताएं भाषा के माध्यम से प्रजनक, युगबोध को साकार करने वाली हैं । यह क्षमता भी उनकी कविताओं में है ।

गढ़वाली शब्दों के क्रिया रूपौं को आपने पूरी प्रवाहमयता के साथ कुशलता से प्रयुक्त किया है । इनकी भाषा मुहावरेदार, अलंकारिक आदि संस्कारों को प्रतिध्वनित करने की अद्भुत शक्ति है इनकी कविताओं में । तत्सम, तद्भव, खड़ी बोली के नव प्रयोगोंसे भरी हुई कई शब्द प्रयुक्तियां मिलती हैं। अतीत की ओर पुनरागमन करने की शब्दों की एक अलग ऊर्जा दिखाई देती है ।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुरूप प्रो. चमोला की कविता में मूर्तविधान की अद्भुत शक्ति है यह चाक्षुष बिंब, औपम्य वातावरण के सृजन से लेकर संबंधित शैली को बहुत ही प्रभविष्णुता के साथ चित्रित करते हैं । बड़े-बड़े परिवर्तन से लेकर छोटे-छोते बदलाव, खत्म हो रही चीजों को आपकी कविता में इतनी महानता से देखा जा सकता है । इतिहास जब कालातीत हो जाता है, लीची की कविता बिना स्थानिक हुए भूमंडलीकृत नहीं होती छोटी-छोटी वह लंबी कविताएं खत्म होती हुई खत्म होती हुई भाषा संस्कृति मूल्य के माध्यम से छूट नहीं पाती आपकी दृष्टि सर्वथा आधुनिक है और उसे आधुनिकता को आप नए-नए शब्द डेमो अनुप्रयोग्थियों एवं मुहावरेदार भाषा में बखूबी चित्रित करते दिखाई देते हैं यह कवि का अपूर्व योगदान है ।

ध्यातव्य है कि 14 जनवरी, 1964 को उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के ग्राम कौशलपुर में स्व.पं. चिंतामणि चामोला ज्योतिषी एवं श्रीमती माहेश्वरी देवी के घर मेँ जन्मे प्रो. चमोला ने शिक्षा में प्राप्त कीर्तिमानों यथा एम.ए. अंग्रेजी, प्रभाकर; एम. ए. हिंदी (स्वर्ण पदक प्राप्त); पीएच-डी. तथा डी.लिट्. के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी राष्ट्रव्यापी पहचान निर्मित की है। अभी तक प्रो. चमोला ने उपन्यास, कहानी, दोहा, कविता, एकांकी, बाल साहित्य, समीक्षा, शब्दकोश, अनुवाद, व्यंग्य, खंडकाव्य, व्यक्तित्व विकास, लघुकथा, साक्षात्कार, स्तंभ लेखन के साथ-साथ एवं साहित्य की विविध विधाओं में लेखन किया है ।

पिछले तेतालीस (43) वर्षों से देश की अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए अनवरत लिखने वाले साहित्यकार प्रो.चमोला राष्ट्रीय स्तर पर साठ से अधिक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं व तिरासी (83) मौलिक पुस्तकों के लेखक के साथ-साथ हिंदी जगत में अपने बहु-आयामी लेखन व हिंदी सेवा के लिए सुविख्यात हैं ।

आपकी चर्चित पुस्तकों में ‘यादों के खंडहर, ‘टुकडा-टुकड़ा संघर्ष, ‘प्रतिनिधि बाल कहानियां, ‘श्रेष्ठ बाल कहानियां, ‘दादी की कहानियां¸ नानी की कहानियां, माटी का कर्ज, ‘स्मृतियों का पहाड़, ’21श्रेष्ठ कहानियां‘ ‘क्षितिज के उस पार, ‘कि भोर हो गई, ‘कान्हा की बांसुरी, ’मिस्टर एम॰ डैनी एवं अन्य कहानियाँ,‘एक था रॉबिन, ‘पर्यावरण बचाओ, ‘नन्हे प्रकाशदीप’, ‘एक सौ एक बालगीत, ’मेरी इक्यावन बाल कहानियाँ, ‘बौगलु माटु त….,‘विदाई, ‘अनुवाद और अनुप्रयोग, ‘प्रयोजनमूलक प्रशासनिक हिंदी, ‘झूठ से लूट’, ‘गायें गीत ज्ञान विज्ञान के’ ‘मेरी 51 विज्ञान कविताएँ’ तथा ‘व्यावहारिक राजभाषा शब्दकोश’ आदि प्रमुख हैं। हाल ही में आपकी अनेक पुस्तकें- ‘सृजन के बहाने: सुदर्शन वशिष्ठ’; ’21 श्रेष्ठ कहानियां’ (कहानियां); ‘बुलंद हौसले’ (उपन्यास); ‘पापा ! जब मैं बड़ा बनूंगा’; ‘मेरी दादी बड़ी कमाल’ (बाल कविता संग्रह) तथा ‘मिट्टी का संसार’ (आध्यात्मिक लघु कथाएं) आदि प्रकाशित हुई हैं।

प्रो. चमोला ने 22 वर्षों तक चर्चित हिंदी पत्रिका “विकल्प” का भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून से संपादन किया है तथा दो बार इस पत्रिका को भारत के राष्ट्रपति के हाथों प्रथम व द्वितीय पुरस्कार दिलाया है । आप देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, आयोगों व संस्थानों की शोध समितियों ; प्रश्नपत्र निर्माण व पुरस्कार मूल्यांकन समितियों के सम्मानित सदस्य/विशेषज्ञ हैं।

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