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शिक्षक की कलम से : 10वीं की परीक्षा पुनर्विचार करे सरकार

सुशील उपाध्याय

दसवीं की परीक्षा रद्द करने के केंद्र सरकार के निर्णय पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है। यह निर्णय ठीक वैसा ही है, जैसे कि पूरे देश में एक साथ लॉकडाउन लगा दिया जाना। कोरोनो के व्यापक फैलाव के बावजूद इस पर पुनर्विचार किए जाने के पीछे कई ठोस कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि सीबीएसई स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे सरकारी स्कूलों के बच्चों की तुलना में अपेक्षाकृत साधन संपन्न हैं। बीते सत्र में यह दावा किया जाता रहा कि सभी बच्चे ऑनलाइन एजुकेशन के साथ जुड़े हुए हैं। जब ये सभी बच्चे ऑनलाइन एजुकेशन के साथ जुड़े हुए हैं तो इनकी परीक्षा ऑनलाइन कराने के विकल्प पर भी विचार होंना चाहिए। हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर जो बैठक हुई, उसमें यह बात निकलकर आई कि ऑनलाइन परीक्षा का विकल्प सूटेबल नहीं है।
यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि ऑनलाइन परीक्षा ठीक उस फॉर्मेट में नहीं हो सकती, जैसी कि ऑफलाइन परीक्षा आयोजित की जाती है। ऑनलाइन परीक्षा को कुछ बदले हुए फॉर्मेट के साथ अवश्य आयोजित किया जा सकता है और किया भी जाना चाहिए। इसमें एक बात यह कही जा रही है कि ऑनलाइन परीक्षा में बच्चे घर पर बैठकर नकल करेंगे। हमने मान लिया कि बहुत सारे बच्चे नकल करेंगे तो भी कहीं न कहीं उन्हें इस बात का संतोष भी होगा कि साल भर जो कुछ पढ़ा है, उसकी कोई न कोई परीक्षा हुई है।
कोरोना का खतरा लगातार व्यापक हो रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि पूरे देश में जितने मामले आ रहे हैं, उनमें से ज्यादातर मामले 5-6 राज्यों में सिमटे हुए हैं। इसे राज्यों के स्तर पर न भी देखें तो ज्यादातर प्रकरण देश के 10 फीसद जिलों में हैं। तो होना यह चाहिए कि इन 10 फीसद जिलों को छोड़कर अन्य जिलों में परीक्षा को पुरानी पद्धति पर ही कराया जाए। जहां स्थितियां खराब हैं, वहां या तो ऑनलाइन पद्धति से परीक्षा हो या अभी बच्चों को प्रमोट कर दिया जाए और जैसे ही महीने-दो महीने में स्थितियां थोड़ा बेहतर होती हैं, उन्हें परीक्षा का अवसर दिया जाए। और इस परीक्षा में किसी को अंतिम तौर पर फेल न किया जाए, बल्कि जो छात्र-छात्राएं किसी विषय में पास न हो सकें तो उन्हें पूरक परीक्षा के एक से ज्यादा अवसर दिए जाएं।
मौजूदा निर्णय के अनुसार, जब सभी बच्चे एक साथ प्रमोट हो जाएंगे तो कहीं न कहीं पढ़ने, तैयारी करने, खुद को परीक्षा के लिए तैयार रखने और फिर परिणाम के जरिए खुद को परखने से जुड़ा पूरा प्रोसेस खत्म हो जाएगा। इस प्रोसेस को इसलिए खत्म नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि पूरे देश में पॉलिटेक्निक और अन्य डिप्लोमा कोर्सेज में दसवीं के सर्टिफिकेट के आधार पर ही एडमिशन दिए जाते हैं। भविष्य में भी इन बच्चों पर यह टैग रहेगा कि इन्होंने बिना परीक्षा दिए ही दसवीं पास की है। इसका असर इनकी दो साल बाद की सीनियर सेकंडरी की परीक्षा पर भी पड़ना तय है।
यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले तक सीबीएसई स्कूल लेवल एग्जामिनेशन का विकल्प भी देती थी। यानी संबंधित बच्चा बोर्ड की बजाय अपने स्कूल स्तर पर ही परीक्षा देता था। इस बार की विषम परिस्थितियों में स्कूल स्तर के एग्जामिनेशन के विकल्प पर भी सोचा जाना चाहिए। स्कूल को यह छूट दी जा सकती है कि वे एक ही विषय के प्रश्नपत्र के कई सेट बनवाकर पूरी परीक्षा को एक साथ कराने की बजाय कुल छात्रों को दो या तीन हिस्सों में बांट कर परीक्षा करा ले। परीक्षा को कम दिनों में सीमित करने के लिए एक विकल्प यह भी हो सकता है कि इस साल प्रयोगात्मक परीक्षाओं को न कराए जाए और जिन विषयों में एक से अधिक प्रश्न पत्र होते हैं, उनमें भी केवल एक संयुक्त प्रश्न पत्र के आधार पर परीक्षा ले ली जाए। इस तरह की परीक्षा में भी यदि कोई छात्र-छात्रा पास नहीं होता तो उसे आगामी दिनों में कंपार्टमेंट परीक्षा के लिए एक से अधिक मौके दिए जाने चाहिए ताकि जिन छात्र-छात्राएं के पास वास्तव में ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई करने के विकल्प नहीं है, उन्हें ऐसा न लगे कि डिजिटल-गैप के कारणों से वे पास नहीं हो पाए हैं।
सीबीएसई द्वारा दसवीं की परीक्षा रद्द किए जाने का एक बड़ा नुकसान यह होगा कि इसी पद्धति पर देश के अन्य बोर्ड भी दसवीं की परीक्षाओं को रद्द करेंगे। इसका परिणाम यह निकलेगा कि जिन राज्यों में परीक्षा संपन्न हो चुकी है, उन्हें छोड़कर बाकी सभी बच्चे इस साल परीक्षा दिए बिना ही पास होंगे। राष्ट्रीय स्तर पर हुई मीटिंग का अभी जो ब्यौरा जारी किया गया है, उसमें कहा गया है कि इस वर्ष बच्चों ने अपने स्कूल स्तर की परीक्षाओं में जो प्रदर्शन किया है, उसके आधार पर अंको और परिणाम का निर्धारण होगा। शिक्षा से जुड़े सभी लोग जानते हैं कि अर्धवार्षिक या प्री-बोर्ड परीक्षाओं में अनेक छात्र-छात्राएं बहुत गंभीरता से प्रतिभाग नहीं करते। इनमें उनके अंक भी कम ही आते हैं। ऐसी स्थिति में यदि अर्धवार्षिक या प्री-बोर्ड परीक्षा के अंकों के आधार पर किसी का मूल्यांकन किया जाएगा तो यह उनके साथ अन्याय ही होगा। यह बात जरूर है कि सरकार ने ऐसे छात्र-छात्राओं को आगामी दिनों में होने वाली अंक सुधार परीक्षा में सम्मिलित होने का अवसर देने की बात कही है।
कुछ लोगों का यह तर्क होगा कि देश में कोरोना के मौजूदा हालात में किसी भी प्रकार की परीक्षा कराया जाना उचित नहीं है, लेकिन जो तर्क ऊपर दिया गया है उसी को आधार बनाकर उत्तराखंड की स्थिति पर चर्चा की जाए तो प्रदेश में 13 में से चार जिले ऐसे हैं, जहां कोरोना का संक्रमण काफी है, लेकिन बाकी नौ जिलों में कोरोना के मरीजों की संख्या बेहद कम है और वहां नए मरीज भी कम ही सामने आ रहे हैं। क्या ऐसे जिलों में भी परीक्षा रद्द किया जाना उचित है ?
एक व्यापक संदर्भ में देखिए तो यह स्थिति एक साथ पूरे देश में लॉकडाउन लगाने जैसी ही है। पूरे देश मे लॉकडाउन की स्थिति को बाद के समय में केंद्र सरकार ने भी परिवर्तित किया और फिर इसे राज्य के स्तर, जिले के स्तर, स्थानीय स्तर, जिसे कंटेनमेंट जोन कहां गया, वहां लागू किया गया। इसी प्रकार की व्यवस्था अब होनी चाहिए कि जिन जिलों में या इससे भी नीचे, जिन स्थानों पर कंटेनमेंट जोन की स्थिति है, उन्हें छोड़कर बाकी स्थानों पर परीक्षा कराई जानी चाहिए। परीक्षा किस रूप में हो, यह कुछ हद तक संबंधित विद्यालयों पर भी छोड़ा जा सकता है।
इस संदर्भ में एक तर्क यह भी दिया जा सकता है कि यदि कोई बच्चा इन परीक्षाओं में नकल करता है तो भी उसे किसी न किसी स्तर पर किताबें उठाकर देखनी ही होंगी। बीते एक साल में कोरोनाजन्य परिस्थितियों के कारण किशोरों को जिस तरह के मानसिक दबाव का सामना करना पड़ा है, उस दबाव के कैथार्सिस में परीक्षाओं की उल्लेखनीय भूमिका है। यदि परीक्षा नहीं होंगी तो यह दबाव यथावत बना रहेगा। हम में से किसी को नहीं पता कि आने वाले कितने समय में कोरोना संक्रमण नियंत्रित हो पाएगा। ऐसे हालात में परीक्षाएं रद्द करने जैसा बड़ा निर्णय बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं जगाता।
बहुत पहले राष्ट्रीय स्तर पर ओपन बुक एग्जामिनेशन की चर्चा भी हो चुकी है। तो अब यह क्यों नहीं किया जाता कि ऐसे प्रश्न तैयार किए जाएं जो ओपन बुक एग्जामिनेशन की श्रेणी के हो और स्टूडेंट्स को छूट हो कि वे अपने घर बैठकर उत्तर पुस्तिकाएं लिख सकें और फिर अपनी सुविधा के अनुसार उन्हें विद्यालय में जमा कर दें। इन्हीं के आधार पर मूल्यांकन हो। इससे न तो छात्र-छात्राओं को कॉलेज जाने की आवश्यकता होगी और न ही बेवजह भीड़ जुटेगी। साथ ही, एक नए विकल्प के रूप में ओपन बुक एग्जामिनेशन की भी परीक्षा हो जाएगी। यह भी उल्लेखनीय है कि दुनिया के कई देशों में ओपन बुक एग्जामिनेशन को एक पद्धति के रूप में स्वीकार किया गया है।

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