साहित्य

प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का अठारहवां राष्ट्रीय पाक्षिक व्याख्यान संपन्न

Children Literature Awards
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साहित्य अकादमी के बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित, बहुचर्चित लेखक प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला श्शैलेशश् के ’सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर अठारहवां (18वां) राष्ट्रीय पाक्षिक व्याख्यान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास द्वारा आयोजित किया गया। यह व्याख्यान उनके चर्चित कविता संग्रह ’‘यादों के खंडहर’’ पर केंद्रित रहा, जिसमें उनकी 57 मौलिक कविताएं सम्मिलित हैं।

समारोह की अध्यक्षता रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर (मध्य प्रदेश) के पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर कपिलदेव मिश्र ने की। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययन मंडल की अध्यक्ष प्रो. गीता नायक विशिष्ट अतिथि रहीं, जबकि डॉ. डी शेषु बाबु, हिंदी विभाग, मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद (आंध्रप्रदेश) आमंत्रित विद्वान के रूप में उपस्थित रहे।

प्रोफेसर कपिलदेव मिश्र ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि, ‘प्रोफेसर चमोला का कृतित्व बहुआयामी है, जिसमें देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति, आध्यात्मिकता और जीवन दर्शन की गहरी छाप है। उनका लेखन न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के लिए एक सशक्त संदेश भी देता है।’ उन्होंने यह भी कहा कि प्रोफेसर चमोला की लेखनी ने पिछले चार दशकों से हिंदी साहित्य की सेवा की है, और उनका काव्य संग्रह एक अद्भुत उदाहरण है जो भारतीय जीवन मूल्यों की सुंदरता को उजागर करता है।

प्रोफेसर चमोला के बारे में प्रोफेसर गीता नायक ने कहा, ‘वे एक उत्कृष्ट कवि हैं, जिनकी कविताओं में न केवल प्रकृति और जीवन के विषय होते हैं, बल्कि वे समाज और संस्कृति के गहरे सवालों को भी उठाते हैं। उनकी कविताएं न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से समृद्ध हैं, बल्कि इनमें राष्ट्रप्रेम, नारी संघर्ष और समसामयिक युगबोध का स्पष्ट रूप से चित्रण किया गया है।’

डॉ. शेषु बाबु ने भी प्रोफेसर चमोला की साहित्यिक प्रतिबद्धता को सराहा और उनके काव्य संग्रह की विभिन्न कविताओं पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर चमोला की कविताएं न केवल राष्ट्रीय भावना और वीरता की बात करती हैं, बल्कि मानवीय संबंधों और समाज की समरसता की आवश्यकता को भी प्रस्तुत करती हैं।

प्रोफेसर चमोला ने इस आयोजन के माध्यम से अपने काव्य संग्रह ’‘यादों के खंडहर’’ की कविताओं की गहराई को साझा किया, जिसमें जीवन, समाज और संस्कृति के तमाम पहलुओं पर विचार किया गया है। उनका लेखन, जो पिछले 43 वर्षों से निरंतर प्रकाशित हो रहा है, हिंदी साहित्य के लिए अनमोल योगदान है।

प्रोफेसर चमोला के योगदान को सराहा गया

इस आयोजन में प्रोफेसर चमोला के जीवन और साहित्यिक यात्रा पर प्रकाश डाला गया, जिसमें उनकी प्रमुख कृतियों का उल्लेख किया गया। उनके द्वारा लिखी गई सात दर्जन से अधिक पुस्तकें, जिनमें उपन्यास, कहानी, कविता, बाल साहित्य, समीक्षा, और अन्य विधाएं शामिल हैं, उनके बहुआयामी लेखन का प्रमाण हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए हैं, जिनमें भारत सरकार द्वारा प्रदान किया गया ’बाल साहित्य पुरस्कार’ भी शामिल है।

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