Climate Change
-मानसून की बारिश लगभग सामान्य ही रही, फिर भी बढ़ीं भूस्खलन की घटनाएं
-मौसम व पर्यावरण विशेषज्ञों ने जताई चिंता, कहा-संभालने होंगे हालात
देहरादून। उत्तराखंड में इस वर्ष मानसून की वर्षा लगभग सामान्य ही रही है, लेकिन बीते कुछ समय में प्रदेश में हुई भूस्खलन की घटनाओं ने ध्यान क्लाईमेट चेंज की ओर आकृष्ट कराया है। मौसम व पर्यावरण विशेषज्ञ और नामचीन संस्थानों के वैज्ञानिकों ने भी माना है कि इस पहाड़ी प्रदेश की इकोलाजी पर क्लाईमेट चेंज का दुष्प्रभाव हो रहा है और स्थिति को संभालने के लिए अहम कदम उठाए जाने की जरूरत है।
उत्तराखंड में बढ़ते तापमान के प्रभाव पर चर्चा करने के लिए देहरादून के उत्तरांचल प्रेस क्लब में एक सम्मलेन का आयोजन किया गया। जलवायु परिवर्तन के बीच सुरक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और विकास सुनिश्चित करने के समाधान और तरीकों पर गहन विमर्श हुआ।
एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ रूरल टेक्नोलॉजी स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर एंड एलाइड साइंसेज के प्रमुख प्रोफेसर डा. राजेंद्र सिंह नेगी ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा “क्लाईमेट चेंज के कारण उत्तराखंड के मौसम में बड़ा परिवर्तन आ रहा है। बारिश के बदलते पैटर्न के कारण खेती पर सीधा असर होता है। भूस्खलन से भी मिट्टी का कटाव होता है। हमें जमीनी स्तर पर कार्य करने की जरूरत है।”
सम्मलेन में शिरकत करने आये क्रायोस्फीयर एंड क्लाइमेट चेंज स्टडीज, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, रुड़की के डा. अश्विनी रानाडे ने बढ़ते तापमान और तेज़ी से पिघलते ग्लेशियर पर कहा कि “अब यह स्थापित तथ्य है कि चरम मौसमी घटनाएं बढ़ रही हैं। पहाड़ों पर तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि भी समस्या बढ़ाने के लिए काफी है।
तापमान में थोड़ी वृद्धि से भी ग्लेशियर पिघल सकते हैं और हिमालय का इको सिस्टम बिगड़ सकता है। ग्लेशियल झीलें बढ़ रही हैं, हमें इनकी पहचान करनी होगी। शीतकालीन बर्फबारी का स्थान वर्षा ने ले लिया है। स्नो कवर एरिया 0.3 प्रतिशत कम हो गया है और अगले 30-40 वर्षों में यह बढ़कर 5 प्रतिशत हो सकता है। हिमालय की गहरी ढलान के कारण 60%-70% वर्षा का पानी नीचे बह जाता है, जिससे उपयोग के लिए वर्षा जल की संभावना भी कम रह जाती है।“
डाटाः आईएमडी
क्लाईमेट चेंज का प्रभाव और उत्तराखंड में बढ़ता भूस्खलन
चरम मौसम की घटनाओं की तीव्रता और संख्या का क्लाईमेट चेंज के कारण बढ़ रहे तापमान से सीधा संबंध है। कम वर्षा वाले ऊंचे क्षेत्रों में भी अब खूब पानी बरस रहा है। बताया जा रहा है कि इस साल उत्तराखंड में भारी से बहुत भारी बारिश के कारण 1500 से अधिक भूस्खलन की घटनाएं हुई हैं। भूस्खलन आमतौर पर तब होता है जब 24 घंटे में 200 मिमी तक बारिश हो जाए। मानव जनित कारणों, भूकंप, ज्वालामुखी, भूजल स्तर में बदलाव, नदी की धारा में कटाव, जल स्तर में बदलाव, बर्फ पिघलने और बारिश के कारण ढलान वाले क्षेत्रों में भूस्खलन की आशंका बढ़ जाती है।
बीते कुछ वर्ष में बढ़ा भूस्खलन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के डाटा के अनुसार 1988 से 2023 के बीच उत्तराखंड में भूस्खलन की 12,319 घटनाएं हुईं। बीते कुछ वर्ष में इस तरह की घटनाओं की संख्या बढ़ी है। आंकड़े बताते हैं कि 2018 में प्रदेश में भूस्खलन की 216 घटनाएं हुई थीं जबकि 2023 में यह संख्या पांच गुना बढ़कर 1100 पहुंच गई। 2022 की तुलना में भी 2023 में करीब साढ़े चार गुना की वृद्धि भूस्खलन की घटनाओं में देखी गई है।
मिट्टी भी कारण
भूस्खलन का एक कारण मिट्टी भी है। मिट्टी की सतह की भेद्यता (पार करने की क्षमता) के कारण पानी नीचे जाता है और यदि नीचे की सतह पानी के लिए भेद्य नहीं है तो पानी का दबाव से ऊपरी परत के खिसकने का खतरा बढ़ जाता है। नदियों वाले पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन की आशंका बढ़ जाती है। गलत भवन निर्माण विधियां, गलत ढलान, अनियोजित तरीके से पेड़ काटना आदि से आपदा के खतरे वाले क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएं तेज होने की आशंका बढ़ती है।
विनोद कुमार भट्ट,प्रमुख, इंडीजेनस रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन, देहरादून ने बताया कि “ गर्मियां बढ़ रही और सर्दियां कम हो रहीं। चीड़ के जंगल बढ़ रहे हैं जो उत्तराखंड की इकोलॉजी के लिए बहुत खतरनाक है। चीड़ के पेड़ की पत्तियाँ अपनी तैलीय विशेषताओं के कारण मिट्टी को पानी सोखने नहीं देती हैं, जिससे पानी बह जाता है। इससे जंगल की आगखतरा भी बढ़ जाता है जो एक और आपदा है जिससे राज्य जूझ रहा है।”
आने वाले समय में चरम मौसमी परिस्थितियां बढ़ती रहेंगी और इन बदलती प्राकृतिक परिस्थितियों में ढलने और समृद्धि कि पथ पर अग्रसर रहने कि लिए कार्यरत रहने की आवश्यकता है। ठोस नीति और जीवनशैली में कुछ बदलाव के साथ आगे बढ़ना ही सूझबूझ होगी।