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दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के संयोजन में प्रख्यात हिंदी साहित्यकार ‘प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर आयोजित पाक्षिक व्याख्यानमाला का चौदहवां (14) ऑनलाइन व्याख्यान उनके चर्चित बाल कविता संग्रह ‘मेरी दादी बड़ी कमाल’ विषय पर केंद्रित रहा । समारोह के अध्यक्ष के रूप में मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई (महाराष्ट्र) के कुलपति, एवम प्रख्यात वैज्ञानिक, प्रोफ़ेसर रवींद्र दत्तात्रेय कुलकर्णी रहे, कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कोच्चि, केरल के पूर्व कुलपति, प्रो. आर शशिधरन विशिष्ट अतिथि रहे, जबकि महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व प्रति कुलपति (महाराष्ट्र) एवं प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो.आनंद वर्धन शर्मा, आमंत्रित विद्वान के रूप में रहे।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति, प्रोफेसर एस डी कुलकर्णी ने कहा कि हिंदी के चर्चित साहित्यकार, प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई जैसी देश की प्रतिष्ठित संस्था विगत कई माहों से एक सतत पाक्षिक व्याख्यानमाला का आयोजन कर रही है तथा अब तक 13 व्याख्यान आयोजित कर चुकी है । इस महत्त्वपूर्ण आयोजन में देश-विदेश की सुधी विद्वानों की उपस्थिति प्रोफेसर चमोला के विशद साहित्यिक व्यक्तित्व का परिचायक है ।
देश की अनेकानेक पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से विगत कई दशकों से मैं प्रोफेसर चमोला की बहुमुखी प्रतिभा और लेखन से परिचित हूं। विभिन्न विधाओं में सात दर्जन से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं, जिन पर देश के अनेक विश्वविद्यालयों में पीएचडी स्तरीय अनेक शोध कार्य संपन्न हुए तथा कुछ चल रहे हैं, यह निश्चित रूप से गौरव का विषय है। मुझे यह बताते हुए हर्ष और गर्व का अनुभव हो रहा है कि हमारे विश्वविद्यालय द्वारा भी वर्ष 2021 में आपकी कविताओं किसी शोधार्थी ने डॉक्टरेट उपाधि प्राप्त की है। विगत 43 वर्षों से प्रो. चमोला की यह अखंड साधना इस बात का प्रमाण है कि वह एक सुधी अध्येता के साथ-साथ एक भावप्रवण कवि, जीवंत कथाकार, स्तंभ लेखक, साक्षात्कारकर्ता एवं चर्चित संपादक भी हैं ।
यही नहीं, उन्होंने देश के प्रख्यात पत्रकारों, लेखकों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों तथा अनेक विभूतियों के अनेक साक्षात्कार भी लिए हैं जो आज से तीन-चार दशक पूर्व देश की असंख्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं । वह देश के कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रखर परिचर्चाएं संयोजित करने के लिए भी विख्यात रहे हैं । प्रसन्नता है कि उन्हें ‘गाएं गीत ज्ञान विज्ञान के’ नामक विज्ञान कविता संग्रह पर भारत सरकार, साहित्य अकादमी का ‘बाल साहित्य पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है । उनका लेखन बहुआयामी है । वह देवभूमि उत्तराखंड से आते हैं इसलिए अपनी परंपरा के अनुरूप उनके लेखन में; चिंतन में; अनुभूति और अभिव्यक्ति में दर्शनिकता व आध्यात्मिकता का पुट सहज रूप में ही दिखाई देता है।
आज का यह कार्यक्रम उनके चर्चित बाल कविता संग्रह पुस्तक ‘मेरी दादी बड़ी कमाल’ पर केंद्रित है, इसकी अधिकांश कविताएं देश के विभिन्न चर्चित समाचार पत्र -पत्रिकाओं- ‘नवभारत टाइम्स’, ‘दैनिक हिंदुस्तान’, ‘नई दुनिया’, हरिभूमि, ‘ दैनिक ट्रिब्यून’, इंदौर समाचार’,राष्ट्रीय सहारा , जनसत्तास’, ‘बालहंस’, ‘नंदन’ आदि में प्रकाशित होती रही हैं । ये बालसुलभ कविताएं जहां बाल मनोविज्ञान में गहराई से पगी है वहीं किसी भी भाव प्रबंध पाठक को अपने बचपन के उन शरारती और जिज्ञासु देनु को स्मरण करने के लिए गुदगुदाने वाली है । इन बाल कविताओं में जहां विषय के आधार पर वैविध्य है, वहींं बाल मनोविज्ञान व जीवन यथार्थ के साथ-साथ अन्यान्य विषयों पर कवि की गहरी पकड़ एवं मार्मिक शैली में उन्हें चित्रण की विशिष्टता पग पग दिखाई देती है । वास्तव में बाल साहित्य सृजन का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है क्योंकि यह राष्ट्र अथवा विश्व के चरित्र एवं जीवन मूल्यों के निर्माण का कार्य है ।
इसमें रचनाकार को बालकों को या बालकों के लिए लिखते हुए स्वयं को चिंतन के उसे धरातल पर ले जाकर अपने चिंतन को तराशना होता है। इन कविताओं में मूल्य, आदर्श, सत्याचरण, शिक्षा, संदेश की गहनता व व्यापकता दिखाई देती है । कुछ कविताएं आकार में भले ही छोटी हैं, लेकिन इनका मंतव्य अथवा प्रतिपाद्य अत्यंत सूक्ष्म, गहन एवं विचारोत्तेजक है । मूल्यों के ह्रास के इस युग में ये जिज्ञासु पाठकों के लिए उनके अपने मूल अस्तित्व का परिचय करातीं हुईं कहीं आत्मबोध जगाती हुईं कर्तव्यबोध के प्रति सजग कर मानव के अंतर्मन को भौतिक नश्वरता के प्रति चेतातीं हैं।
जीवन की निसारता, यथार्थता व वैचारिक दर्शन से उपजी हुई इन कविताओं में सत्संकल्प के साथ मूल्य-स्थापना, गहन शिक्षण, चरित्र निर्माण एवं वैश्विक कल्याण के भाव सन्निहित हैं। वे जितने अच्छे कवि, व्यंग्य लेखक व उपन्यासकार हैं, उससे अधिक प्रभावी बाल साहित्यकार भी हैं जो बहुत सीमित विषयवस्तु में उस असीम के सार्थक संदेश एवं जीवन यथार्थ को प्रकट करने में कदाचित हिचकिचाते नहीं । निश्चित रूप से यह संग्रह, भारतीय जीवन मूल्यों एवं बाल मनोविज्ञान कोआधार बना कर एक विवेकशील व सुसंस्कृत समाज के निर्माण की एक महत्वपूर्ण एवं सार्थक पहल है।
मैं इसके लिए प्रबुद्ध कवि को हार्दिक बधाई देता हूं एवं आश्वस्त हूं कि भविष्य में भी प्रो.चमोला अपनी उत्कृष्ट रचनाधर्मिता से हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अपना अपूर्व योगदान पूर्ववत देते रहेंगे। इस आयोजन के लिए मैं पुनः दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा,चेन्नई कोहार्दिक बधाई देता हूं । आमंत्रित विद्वान के रूप में पूर्व कुलपति, प्रो आर शशिधरन ने कहा एक साहित्यकार के सृजन मूल्यांकन को लेकर किसी प्रतिष्ठित संस्था द्वारा 14 (चौदह) व्याख्यान का संपन्न करवाना एक अत्यंत ऐतिहासिक व अनुकरणीय कार्य है।
इतनी उपलब्धियां के बाद भी प्रो. चमोला की सहजता, सौम्यता व उत्कृष्ट लेखन की परिशुद्धता अत्यंत अभिनंदनीय है। इस संग्रह की 59 कविताएं वैविध्यपूर्ण विषयों पर रची गई हैं । बाल साहित्य लिखना उतना आसान नहीं है, बच्चा हो जाना पड़ता है। विविधमुखी इन कविताओं का रचना शिल्प अत्यंत प्रभावित करने वाला है। चरित्र निर्माण में बाल साहित्य की भूमिका अविस्मरणीय है। इन कविताओं की राष्ट्रीय चेतना में जयशंकर प्रसाद व मैथिलीशरण गुप्त की राष्ट्रीयता का स्वर प्रतिबिंबित होता है। प्रसाद गुण संपन्न ये कविताएं किसी को भी गुनगुनाने के लिए विवश कर सकती हैं। मूल्यहीनता के संरक्षण में इन कविताओं का अपूर्व योगदान है। ऋतु -पर्वों से लेकर प्राकृतिक अवयवों तथा अनेक अनेक माध्यमों से कवि ने मिथक और आधुनिकता की मूल्योन्मुखी प्रयोग किया है। बदलते मूल्य का भी इसमें अंगूठा चित्रण किया गया है। मूल्यों को बनाए रखकर जीवनी शक्ति देती ये कविताएं अत्यंत प्रभावी, संग्रहणीय के साथ अनुकरणीय भी हैं। इसके लिए अपने बहुआयामी लेखन के लिए चर्चित प्रो. चमोला सदैव बधाई के पात्र हैं। विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए पूर्व प्रति कुलपति, प्रोफेसर आनंद वर्धन शर्मा ने कहा प्रोफेसर चमोला की रचनाधर्मिता बहुआयामी है।
हिमालय की पवित्रता की ही तरह उनके लेखन में भी यह निश्चलता, यथार्थता और पारदर्शिता दिखाई देती है। बच्चों के साथ बढ़ती हुई तरुणाई के लिए एवं भारतीय ज्ञान परंपरा के संरक्षण में भी यह कविता संग्रह अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें अपनी प्राचीन परंपरा से लेकर आधुनिक ज्ञान परंपरा को गूंथते हुए रचनाकार ने विविधमुखी प्रयोग कर पाठक की जिज्ञासाओं के शमन के लिए त्योहार, प्रकृति, मूल्य, राष्ट्रीय चेतना आदि के माध्यम से भारतीय परिवेश का सांगोपांग चित्रण किया है। बालमन जिज्ञासाओं को प्रश्नों के माध्यम से ज्ञान को परिभाषित करते हैं। उनकी कविताओं में रवींद्रनाथ टैगोर की सी प्रभावमयता दिखाई देती है। प्रकृति की सौम्यता, पवित्रता के साथ उत्तराखंड की निर्मल प्रकृति की तरह उनकी कविताओं में यह सहजता दिखाई देती है।
ये कविताएं आज के बड़े होते बच्चों के प्रश्नों की वीथिकाओं से अनेक जिज्ञासाओं के रंग भरती हैं। इनमें बाल मनोविज्ञान की सफल अभिव्यक्ति हुई है। कवि की रचनाधर्मी दृष्टि समाज के वंचित समाज पर भी है जो अभावग्रस्त जीवन जीने को बाध्य हैं, उनका भी सूक्ष्म चित्रण कवि ने अपनी कविताओं में किया है। इस संग्रह की कविताएं पुनः बचपन में लौटने का आमंत्रण देती हैं। बालपन ही आज के डूबते हुए समाज को बचाने का कार्य करता है।
ये कविताएं मूल्य, आत्मीयता, अतीत का गुणगान करती हुई सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखती हुई आज के पूरे परिवेश को चित्रित करते हैं। इनमें पर्यावरणीय चिंता, मूल्यह्रास के साथ अपने को खुश रखने के लिए मनुष्य प्रकृति को हताहत करना चाहता है, इन सारी बातें इन रचनाओं के माध्यम से रचनाकार ने चित्रित की है। छोटे-छोटे विषयों पर जानकारीप्रद कविताएं लिखकर प्राचीनता व नवीनता का सुंदर सामंजस्य उनके कविताओं में दिखाई देता है। बदलते हुए समाज की चिंताओं को आधार बनाकर लिखी ये कविताओं महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि हम सबके लिए प्रेरणादाई व अनुकरणीय भी हैं। प्रो. मंजुनाथ अम्बिग, शोधार्थी भावना गौड़, विनीता सेतुमाधवन ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया।
ध्यातव्य है कि 14 जनवरी, 1964 को उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के ग्राम कौशलपुर में स्व.पं. चिंतामणि चामोला ज्योतिषी एवं श्रीमती माहेश्वरी देवी के घर मेँ जन्मे प्रो. चमोला ने शिक्षा में प्राप्त कीर्तिमानों यथा एम.ए. अंग्रेजी, प्रभाकर; एम. ए. हिंदी (स्वर्ण पदक प्राप्त); पीएच-डी. तथा डी.लिट्. के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी राष्ट्रव्यापी पहचान निर्मित की है। अभी तक प्रो. चमोला ने उपन्यास, कहानी, दोहा, कविता, एकांकी, बाल साहित्य, समीक्षा, शब्दकोश, अनुवाद, व्यंग्य, खंडकाव्य, व्यक्तित्व विकास, लघुकथा, साक्षात्कार, स्तंभ लेखन के साथ-साथ एवं साहित्य की विविध विधाओं में लेखन किया है। पिछले बयालीस (42) वर्षों से देश की अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए अनवरत लिखने वाले साहित्यकार प्रो.चमोला राष्ट्रीय स्तर पर साठ से अधिक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं व तिरासी (83) मौलिक पुस्तकों के लेखक के साथ-साथ हिंदी जगत में अपने बहु-आयामी लेखन व हिंदी सेवा के लिए सुविख्यात हैं। आपकी चर्चित पुस्तकों में ‘यादों के खंडहर, ‘टुकडा-टुकड़ा संघर्ष, ‘प्रतिनिधि बाल कहानियां, ‘श्रेष्ठ बाल कहानियां, ‘दादी की कहानियां¸ नानी की कहानियां, माटी का कर्ज, ‘स्मृतियों का पहाड़, ’21श्रेष्ठ कहानियां‘ ‘क्षितिज के उस पार, ‘कि भोर हो गई, ‘कान्हा की बांसुरी, ’मिस्टर एम॰ डैनी एवं अन्य कहानियाँ,‘एक था रॉबिन, ‘पर्यावरण बचाओ, ‘नन्हे प्रकाशदीप’, ‘एक सौ एक बालगीत, ’मेरी इक्यावन बाल कहानियाँ, ‘बौगलु माटु त….,‘विदाई, ‘अनुवाद और अनुप्रयोग, ‘प्रयोजनमूलक प्रशासनिक हिंदी, ‘झूठ से लूट’, ‘गायें गीत ज्ञान विज्ञान के’ ‘मेरी 51 विज्ञान कविताएँ’ तथा ‘व्यावहारिक राजभाषा शब्दकोश’ आदि प्रमुख हैं।
हाल ही में आपकी अनेक पुस्तकें- ‘सृजन के बहाने: सुदर्शन वशिष्ठ’; ’21 श्रेष्ठ कहानियां’ (कहानियां); ‘बुलंद हौसले’ (उपन्यास); ‘पापा ! जब मैं बड़ा बनूंगा’; ‘मेरी दादी बड़ी कमाल’ (बाल कविता संग्रह) तथा ‘मिट्टी का संसार’ (आध्यात्मिक लघु कथाएं) आदि प्रकाशित हुई हैं। प्रो. चमोला ने 22 वर्षों तक चर्चित हिंदी पत्रिका “विकल्प” का भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून से संपादन किया है तथा दो बार इस पत्रिका को भारत के राष्ट्रपति के हाथों प्रथम व द्वितीय पुरस्कार दिलाया है । आप देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, आयोगों व संस्थानों की शोध समितियों ; प्रश्नपत्र निर्माण व पुरस्कार मूल्यांकन समितियों के सम्मानित सदस्य/विशेषज्ञ हैं।