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पेड़ कट रहे हो हर ओर, तब आज हरेला कैसे हो -के नारों के साथ हरेला स्वागत मार्च

Harela Mahotasav
Written by Subodh Bhatt

Harela Mahotasav

देहरादून। 2010 से लगातार जारी धाद संस्था के हरेला मनाने की परंपरा इस वर्ष भी जारी रखते हुए इसकी शुरुआत हरेला स्वागत मार्च के साथ परेड ग्राउंड देहरादून से हुई। पद्मश्री माधुरी बर्थवाल की आवाज मे गीत ‘झूमेलों झूमेलों लगौला झूमेलों, हैरयाली एग्यायी लगौला झूमेलों, सौण का मैना मा लगौला झूमेलों’ और ढोल-दामों की थाप सुषमा एवं पुष्पा डुकलान के साथ हरेला का स्वागत किया गया।

हरेला संक्रांत से लेकर घी संक्रांत तक महीने भर चलने वाली इस मुहीम मे प्रदेश के विभिन्न संस्थानों, दफ्तरों और मोहल्लों मे पौधारोपण करने और पुराने पेड़ों को बचाने की पहल की जाएगी।

Harela Mahotasav

मार्च का स्वागत करते हुए धाद के अध्यक्ष लोकेश नवानी ने कहा धाद की 14 वर्षाे से की जा रही इस पहल ने हरेला को एक कृषि पर्व से बढ़ाकर जन आंदोलन का रूप दे दिया है। आज वैश्विक स्तर पर जरूरत भी यही है कि समाज पर्यावरण संरक्षण को अपनी जिम्मेदारी के रूप मे ले और कृषि एवं पर्यावरण उत्कर्ष मे भागीदारी करे।

धाद- ट्रिज ऑफ दून के संयोजक हिमांशु आहूजा ने कहा कि इस वर्ष की प्रचंड गर्मी ने हमारे आसपास हरियाली और पेड़ों की जरूरत को लेकर हमारा ध्यान खींचा है, पर काम बहुत लंबा है। हमारी पुरानी पीढ़ियों ने जो देहरादून शहर में हजारों बेशकीमती और ऐतिहासिक पेड़ हमारे लिए लगाए थे, आज हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें बचाएं। ये हम सबकी सामूहिक विरासत है, इसे बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है। यही असली हरेला है।

कृषक बाग़वानी संगठन के सचिव बीर भान सिंह ने कहा जलवायु परिवर्तन से पेड़-पौधों की निद्रा अवस्था से कम होने के कारण पेड़ों के जीवनचक्र मे बदलाव आया है।

शीतकाल वा वर्षाकाल मे कम बर्फ़बारी और वर्षा से पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी नहीं मिल रहा हैं। पहाड़ के फल-सब्जी के बीजों की गुणवत्ता पर राज्य सरकार का कोई ध्यान नहीं है। सरकारी तंत्र मे अनुभव की कमी होने के कारण वे उत्पादन लक्ष्य नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं।

धाद के सचिव तन्मय मंमगाई ने कहा इससे पहले कि हरेला के उत्सव के साथ हम धरती में पौधा रोपे और उसका हरापन हम सब को अभिभूत कर दे। कुछ सवाल है जिन पर सोचा जाना जरुरी हो चला है।

गांव हो रहे जब वीरान तब आज हरेला कैसे हो, पेड़ काट रहे हो हर ओर तब आज हरेला कैसे हो के नारे पिछले हरेला मार्च में उपजे थे।

उत्तराखण्ड में एक बड़ा असंतुलन साफ़ दिखाई देता हैं गाँव के बीरान होने और खेतो के बंजर होने की खबरे हम तक रोज बरोज आती रहती हैं और उसके चलते शहरों में बढ़ते जा रहे जनसंख्या के दबाव ने उसकी हरियाली उसके पेड़ों पर संकट खड़ा कर दिया है।

इन्ही सब चिंताओं को हम व्यक्तिगत रूप से अपने मित्रों से करते रहते हैं। आज वह अवसर हैं जब इन सामाजिक चिंताओं को सामूहिक रूप से जाहिर किया जाय और सड़क में मार्च के साथ समाज को साझा किया जाए।

सिटीजन फॉर ग्रीन दून की तरफ से अपनी बात रखते हुए संस्था के अध्यक्ष हिमांशु अरोरा ने कहा हरेला का असली महत्व पेड़ लगाने के साथ साथ हमारे पुराने पेड़ों को बचाने में भी है,ये हमारी धरोहर है, जिस तरह से राक्षसी विकास के दौड़ में बेतहाशा पेड़ और पहाड़ काटे जा रहे हैं,वो दिन दूर नही जब हरेला मात्र रस्मी आयोजन बन कर रह जायेगा।

इस अवसर पर प्रदेश की विभिन्न संस्थाओं ने भागीदारी की। मार्च मे आर्यन ग्रुप से फैजी अलीम, सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटीयाल, ऋतु चटर्जी, जगमोहन मेहंदीरता, सतीश धौलाखण्डि, आशीष गर्ग, हर्षमणि व्यास, ईरा चौहान, जया सिंह, पुष्पलता मंमगाई, समदर्शि बर्थवाल, इंदु भूषण सकलानी, आशा डोभाल , नीना रावत, डी सी नौटीयाल, मीनाक्षी जुयाल, कल्पना बहुगुणा, बीरेन्द्र खण्डूरी, आयुष ध्यानी, बृजमोहन उनियाल, शुभम शर्माआदि मौजूद थे।

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