– महामारी काल में साढ़े चार हजार से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार करने वाले जितेंद्र सिंह शंटी ने प्रेस क्लब में आयोजित ‘शंटी से संवाद’ में साझा किए अनुभव
देहरादून, 6 अप्रैल : कोविडकाल में जब मरीजों से उनके स्वजन भी दूर भाग रहे थे, जब ऐसे वक्त दिल्ली-एनसीआर में साढ़े चार हजार से ज्यादा शवों को श्मशान ले जाकर उनका अंतिम संस्कार करने वाले पद्मश्री जितेंद्र सिंह शंटी का कहना है कि कोविड जैसी आपदा के वक्त कई लोगों ने जहां अपनी क्षमतानुसार अच्छा काम किया, वहीं अनेक लोगों की इंसानियत भी इस दौरान मर गई। खासकर, हॉस्पिटल इंडस्ट्री ने जमकर लूट मचाई, लेकिन सरकारें कुछ नहीं कर पाईं।
कोविडकाल में ‘एंबुलेंस वाले सरदारजी’ और ‘पीली पगड़ी वाले सरदारजी’ जैसे नामों से ख्याति अर्जित करने वाले जितेंद्र सिंह शंटी आज उत्तरांचल प्रेस क्लब में थे। क्लब की ओर से अध्यक्ष जितेंद्र अंथवाल की अध्यक्षता व महामंत्री ओपी बेंजवाल के संचालन में मीडिया और समाज के विभिन्न वर्गों के प्रमुख लोगों के लिए ‘शंटी से संवाद’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। साल-1996 से सरदार भगत सिंह सेवादल के नाम से मानवता की सेवा में समर्पित शंटी ने अपने अनुभव साझा करते हुए खासतौर से कोविडकाल की त्रासदी का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली में एक-एक दिन में एक-एक श्मशान में 200 से भी ज्यादा शव आ रहे थे। लोग अपने कोविड से मृत परिजन के शवों को छूने तक को तैयार नहीं थे। अनेक शवों को कंधा तक नसीब नहीं हुआ। अनेक ऐसे लोगों की कॉल भी उन्हें शव उठाने के लिए आती थी, जो काफी संपन्न थे। ऐसे कई मृतकों के परिजन शवों को अस्पताल में ही छोड़ जाते थे। कई ऐसे भी मौके आए, जब परिजनों ने मृतकों के शव उठने से पहले उसके जेवरात उतरवा कर रख लिए, लेकिन जब हमने दाह संस्कार कर दिया, तो उनकी अस्थियां तक लेने परिजन नहीं आए।
शंटी कहते हैं कि जहां पूरे कोविडकाल में कुछ लोगों ने अच्छा काम किया। अस्पतालों के डॉक्टर्स व स्टाफ भी लोगों की सेवा कर रहे थे, वहीं हॉस्पिटल इंडस्ट्री के संचालकों ने जमकर लूट मचाई। लाखों रुपये तक लोगों से लिए गए। लाशें नहीं दी गईं। दो-ढाई हजार का इंजेक्शन 20 हजार-50 हजार और ज्यादा में बेचे गए। ऑक्सीजन सिलेंडर एक-एक लाख रुपये तक में दिए गए। एंबुलेंस वाले जहां 2 हजार लेने थे, वहां एक-एक लाख तक वसूल रहे थे। सरकारें कुछ नहीं कर पा रही थीं। लग रहा था जैसे इंसानियत मर चुकी है। यह इस आपदाकाल की सबसे बड़ी त्रासदी थी। शंटी के अनुसार, उन्हें अकेले जुटे देख उनका बेटा डॉ. ज्योत जीत भी शवों के अंतिम संस्कार में जुट गया। पत्नी मंजीत ने मेरा व दोनों बेटों को इस सेवाकार्य में प्रोत्साहित किया। इसके चलते ही वे मृतकों को ‘मोक्ष’ दिलाने की कोशिश में सफल रह पाए। आगे भी जब तक जीवन है, वे लोगों की सेवा में समर्पित रहेंगे।
उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन में करेंगे मदद
जितेंद्र सिंह शंटी और आपदा प्रबंधन में विशेषज्ञता रखने वाले उनके पुत्र डॉ. ज्योत जीत ने बताया कि उत्तराखंड आपदा प्रभावित राज्य है। इसलिए, वे यहां ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों, खासकर स्कूली छात्र-छात्राओं को आपदा प्रबंधन का नि:शुल्क प्रशिक्षण देंगे। साथ ही एंबुलेंसों समेत जो जरूरी संसाधन होंगे, वे भगत सिंह सेवा दल के माध्यम से नि:शुल्क उपलब्ध कराएंगे। इसमें यहीं के लोगों को रोजगार भी मिलेगा और वे आपदा प्रभावितों तक त्वरित मदद भी पहुंचा पाएंगे। दिल्ली में उन्होंने महिलाओं के लिए अगल से एंबुलेंस सेवा शुरू की है, जिसमें उन्नति एंबुलेंस पायलट के तौर पर सक्रिय है।
अभिशौर्य ने भेंट किया स्केच, संस्थाओं ने सम्मान
उत्तरांचल प्रेस क्लब की ओर से अध्यक्ष जितेंद्र अंथवाल ने पुष्पकली भेंटकर शंटी का स्वागत किया, जबकि संयुक्त मंत्री दिनेश कुकरेती ने जितेंद्र सिंह शंटी का परिचय दिया। पूर्व अध्यक्ष दर्शन सिंह रावत, नवीन थलेड़ी, पूर्व महामंत्री संजीव कंडवाल, वरिष्ठ पत्रकार कुमार अतुल, आईपी उनियाल व रामगोपाल शर्मा ने स्मृति चिह्न भेंट किया। पत्रकार अनुपम सकलानी के पुत्र अभिशौर्य सकलानी ने शंटी का स्कैच तैयार किया, जिसे अभिशौर्य ने शंटी को भेंट किया। दून संयुक्त नागरिक संगठन के सुशील त्यागी, प्रदीप कुकरेती, सेवा सिंह मठारू व सत्यप्रकाश ने शंटी का शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया। श्रीगुरु सिंह सभा आढ़त बाजार के अध्यक्ष गुरुबख्श सिंह राजन, महासचिव गुलजार सिंह, नन्हीं दुनिया की संचालक किरण उल्फत, सामाजिक कार्यकर्ता गुरदीप कौर, आशा टम्टा, शूटर दिलराज कौर, पार्षद देवेंद्र पाल मोंटी, भाजपा नेता बलजीत सिंह सोनी, खालसा कोविड क्रिमेशन टीम के सदस्य रविंद्र सिंह आनंद, गुरविंद्र सिंह आनंद, अमरजीत सिंह आनंद, नीरज ढींगरा, हरदीप सिंह, मिथुन रौथाण के साथ ही काफी संख्या में पत्रकार मौजूद रहे। कोषाध्यक्ष नवीन कुमार, नलिनी गोसाईं आदि ने अतिथियों का स्वागत किया।