भारत माँ ने आँखें खोलीं
(चौपाई छन्द )
भारत माँ ने आँखें खोलीं ।
देखो वो भी कुछ तो बोली ।।
बालक मेरे हैं अवसादित ।
पथ से भटके, क्यों हैं बाधित।।
वसुधा वीरों की मुनियों की ।
ज्ञान – कोष थामें गुनियों की ।।
कोई तो था प्रभु का साया ।
कोई गंगा भू पर लाया ।।
संतानें अब बदल गई हैं ।
माँ की आँखें सजल भई हैं ।।
निकलो अपनी हर पीड़ा से ।
खुद को सुख दे हर क्रीडा से ।।
कुटिया चाहे ठौर बनाना ।
घी का चाहे कौर न खाना ।।
पावनता को अपनाना है ।
नवयुग सुख का फिर लाना है।।
किरणें थामे नैन कोर हो ।
सबकी अपनी सुखद भोर हो ।।
बनना खुद के भाग्य विधाता ।
आस लगाये भारत माता ।।
ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप (देहरादून )