कविता

हरीश कंडवाल मनखी कलम बिटी कविता : गुठलू

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गुठलू

मि भी छ्यायी कै जमन मा गुठलू
कान्ध मा टाटू ,मुंड मा धरि पल्लू
मूँगरू ठुकीन टैल टँगवनी कील तँझला
द्वी ज्वाळ पल्लू मुड़ीन रैन बखरा।।

बरखा दिन पल्लू मा बणदरी टूणमुणाट
अंधयरी रात मा बाघ डैर की उकताट
छवटी सी खटोली मा चीनकू कुरच्याट,
दिन मा माख अर ब्यखन मच्छरू भीमणाट।

एक नाख मा खड़ी बळदू की जोड़ी
दूसर नाख मा जुगळी करदी लैंदी गौड़ी
मुख एथर बन्ध्या लैंद बछर, बखर आड़
भ्योळ मुच्यळ की सार दींद लगी आग।

सुबेर गोट सरकाण, बळग्वट द्याण
भदवाड़ मा हळया बणी रुट्टी खाण
ग्वाठ मा रैकी जूड़ नकवळ खूब बौटीन
मील भी दगड्यो ग्वाठ मा रैक रात बीतेन।

जै भग्यान ह्वेल या गोठ उ राजी रैन
आज गोठ देखी कन दिन याद ऐन
कभी हमुन भी अपर खैरी दिन बीतैंन
यी गोठ खेत बस फ़ोटो मा समलौण ह्वे गेन।

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