साहित्य

नीलम पांडेय ‘‘नील’’ की कविता ‘बापू……एक विचार’

Bapu
Written by Subodh Bhatt

Bapu

बापू !
बापू !
वे भूल गये कि
वो समय अलग था
विषय अलग था
‘जिसकी होती है सत्ता
वही होता है तुरूप का पत्ता’।

बापू!
सच कहूँ तो गुलाम
आदमी में,
गुलाम भारत था ……
फूल, पौंधे, पत्ते तक सहमे होंगे
उनकी अंग्रेजी ताकत में
अपनी हिन्दी डरी- डरी सी होगी
कई बीर शहादत कर गये
कुछ बगावत कर गये
सब याद है ।

बापू!
माना कि सबने मिलकर गोरों को खदेड़ा
कुछ ने प्रभात फेरी सजायी
कुछ ने बंदूकें उठायी
अपने – अपने नारे थे
अपनी अपनी तरकीबें भी
कुछ जोश, कुछ में होश
कुछ में सीनाजोरी थी ….
हालाँकि आगे बढ़ने की
अद्भुत बीरों की टोली थी।

बापू!
पर आसान नही हुआ होगा बापू
जिसकी सत्ता उसका खंडन
तब जो आपने राह सुझाई
बिगड़ी बात बनायी …… होगी
गर हिंसा का ही सिर्फ खेल होता
माना आज भी पाकिस्तान अपना होता
तब क्या हो जाता
आतंकवाद का बीज भारत में उगता
अच्छा हुआ जो जंगली घास सीमा के
बाहर उगायी …

बापू!
तुम अडिग
विचार
एक सिद्धांत बने
सत्य अहिंसा के अनुयायी
दुश्मन ने भी की अगुवाई
बांधे सामान चल पड़े समुदायी
बापू …..खोज रहें हैं वो तुमको
जिनकी पीढ़ियाँ तुम पर इठलाई …

बापू!
लेकिन जिस जिस ने तब अंग्रेजी मलाई खायी
आज उनके ही अनुज करते हैं जग हसांयी
मुर्तियाँ सुन नही सकती,
बोल नही सकती,
कह नही सकती,
इसलिए उन्होंने शब्द हिंसा अपनायी ।
बापू, जो रक्त पीया करते हैं
वे अहिंसा से डरा करते हैं ….

नीलम पांडेय ‘नील’
देहरादून ….

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Subodh Bhatt

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