क्या हूंद (व्यंग्य मात्र
जब बसयिं सैणी गैर व्हे ग्यायी
कजै पर भरोसू कन क्वे कन
ढब पडी जादं ठांग मा रैण क
उन गाज मा रैवास कन क्वे कन।
जौन कब्बी रूड़या घाम नी देखी
उ कुणी ग्रीष्मकालीन क्या हूंद
जौन सदनी पकयीं रूट्टी खैन
उन क्या जण घूण कन हूंद ।
जौंक ठोकर खयीं व्हाव ढुगों पर
उंते बाट हिटण कू सगोर हूंद
जू गाड़ी मा इने उने अटकणा रंदीन
उंते क्या पता, उकाळ उंदार क्या हूंद।
जू भीतर बैठी कन माछ डाळ मा चढंदन
उतैं क्या पता गाड़ गदन सुंसयाट कन हूंद
जौन लोगून पहाड़ कब्बि अणकळी नी छ
उन क्या जण पहाड़ मा रैवास कन हूंद।
जू हैलीकॉप्टर मा बैठी दिल्ली इलाज कराणा
उंते क्या पता बाट पर स्वील्या पीड़ा क्या हूंद
जौन गुणी बांदर पिंजरा मां बंद कर्या दिखिन
उंते क्या पता मैस्वाख बाघ गुगराट क्या हूंद।
हरीश कण्डवाल ’मनखी’ कलम बिटी