उत्तराखंड, देहरादून: आजकल सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा छाया हुआ है। हो भी क्यों ना क्यूंकि पुरानी पेंशन ही वास्तविक रुप से पेंशन कहलाने की हकदार हैं, नई पेंशन तो केवल नाममात्र की ही पेंशन है जिसमें उतनी ही पेंशन है जितना दालचीनी में दाल और चीनी होता है। इसलिए बुढ़ापे की चादर कहलाने का श्रेय भी पुरानी पेंशन को ही दिया जा सकता है। राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा (NOPRUF), उत्तराखंड के प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ० डी० सी० पसबोला* का भी मानना है कि पेंशन और पेंशन में भी पुरानी पेंशन को ही बुढ़ापे की चादर कहना ज्यादा उचित रहेगा। क्योंकि ये ही किसी सेवा निवृत्त कर्मचारी को रिटायर होने के बाद आर्थिक तथा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने में पूर्णतया सक्षम है।आगे डॉ० पसबोला ने कहा कि कहते हैं न की जितनी चादर उतना ही पैर फैलाओ, इसी बात से शायद कहा गया हो की बुढ़ापे की चादर पेंशन है क्योंकि पेंशन बुढ़ापे का सहारा है और इस पेंशन से ही वृद्ध नागरिक अपनी जरूरतें पूरी करते हैं। तो जितनी पेंशन उसी में गुजारा।साथ ही अक्सर देखने में आता है कि बुढ़ापे में रिश्तों की अहमियत नही रह जाती। लोग अपने बूढे माँ बाप को बोझ लगने लगते हैं और उन्हें दो वक्त का भोजन देने से कतराने लगते हैं। ऐसे में अगर उन्हे पेंशन मिलती है तो कुछ सहारा मिल जाता है। पैसे से सारे दुख दूर नही होते। पर जिन्दगी थोड़ी आसान ज़रूर हो जाती है।इसलिए कहा जा सकता है कि पेंशन सिर्फ़ चंद हजार रुपए की ही बात नहीं होती है, बल्कि एक चादर होती है बुढ़ापे की, जिससे रिटायर आदमी अपनी इज्जत को ढंकता है, ताकि उसके बच्चे उसे बोझ न समझें। दुनिया अपनी रफ़्तार से आगे चलती रहती है, बस बूढ़े लोग पीछे छूट जाते हैं।