साहित्य

कविता ‘फिर एगींन चुनाव’ हरिश्चंद्र कंडवाल मनखी की कलम से

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फिर एगींन चुनाव

क्या बुन दिदा फिर अया छ्यायी
5 साल बिटी जू फ़सोरी सिया छ्यायी
बुलणा छ्यायी कि हम विकास करला
अपर त कूड़ी बजार मा, यख पलायन रुकला।।

कैन बते अपरी जाति , कैन बणे रिश्तेदार
क्वी काका बाड़ा, क्वी बुनु तुमरी सार
कैन बड़ू भैजी, कैन ब्वाल छवटू भुला
चुनाव खत्म व्हे कि समझदन हम तै घर्या सी मूळा।

बात हूँणी यख दिल्ली देहरादूण की
हम तै चियाणी यख हूँण खाण की
ना रोजगार बात, ना सड़क अस्पताळ
येक दूसरा बुरे करि कि बणना छन घोर बिताळ।

कै पर भरोसू करो हम, कैकी सुणो हम
जौक बाना दगड मा खयाणा छवा तुम
उ चकडैत बणी कन,हम तै बेकूफ़ समझी
ब्यखन दा दगडी पीणा छन व्हिस्की रम।

क्वी बुलणु कमल खिलणा, क्वी बताणा हत्थ जितणा
क्वी ब्वान दिखाणा, क्वी कुर्सी निशान बताणा
उन चुनो जीती ठाठ कन, हमून इनि रैण ठोकर खाणा
आज जौक हत्थ जुड़या, सी बाद मा राल गुंठा दिखाणा।।

हरीश कंडवाल मनखी कलम बिटी।

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