लेख

Dr. सुशील उपाध्याय : नाले वाली ताज़ी सब्जियां

Spread the love

देहरादून में घर के पीछे की तरफ एक बड़ा खेत है, जिस पर बहुत सारी सब्जियां उगाई गई हैं। यह खेत कभी खाली नहीं रहता। एक के बाद एक कोई न कोई सब्जी तैयार हो रही होती है। इन सब्जियों को उगाने वाले लोग बेहद मेहनती हैं। सुबह से देर शाम तक खेतों में लगे रहते हैं और जितनी तरह की सब्जियों की आप उम्मीद कर सकते हैं, वे सभी सब्जियां उगाते हैं।
इन हरी-भरी ताजी चमकदार सब्जियों को देखकर अक्सर मुझे लगता है कि सब्जी यहीं से ली जानी चाहिए। एकदम फ्रेश और फर्स्ट हैंड! सुबह उठा तो घर के पीछे की तरफ से कुछ बदबू जैसी आ रही थी। बाहर झांककर देखा तो खेतों में पानी लगाया जा रहा था। पानी एक पाइप से आ रहा था और बदबू का तेज झोंका भी उसी पानी का हिस्सा था। मैंने पानी दे रहे लड़के से पूछा कि आप लोगों ने ट्यूबवेल लगाई है क्या, उसने कहा नहीं। फिर पानी कहां से आ रहा है ? लड़का चुप हो गया। मैंने अपने अनुमान, बल्कि आशंका को सही साबित करने के लिए उससे पूछा यह महंत इंद्रेश मेडिकल कॉलेज के बराबर से होकर बहने वाले नाले का पानी तो नहीं है ?
लड़के ने सवालों की बला को टालने के लिए सहमति में सिर हिलाया और कहा कि आप खुद बताइए देहरादून में एक-दो बीघा किराये की जमीन में सब्जी उगाने के लिए ट्यूबवेल कैसे लगाई जा सकती है और केवल हमारे यहां ही नहीं, आसपास जितने भी खेतों में सब्जी पैदा हो रही है, सभी खेतों में नाले का पानी दिया जा रहा है। मेरे ज्ञान ने जोर मारा और मैंने उससे कहा कि यह तो बड़ा खतरनाक है। नाले में फैक्ट्रियों का पानी आ रहा है, अस्पताल का पानी आ रहा है और गलियों का गंदा पानी आ रहा है। ना जाने उसमे क्या-क्या मिला हुआ है, वह सब तुम सब्जियों में लगा रहे हो ! उसने सीधा जवाब दिया, इस पानी से सब्जियां बहुत अच्छी होती है। नाले का पानी खाद की तरह काम करता है।
अब यह तो वैज्ञानिक या भगवान ही जाने कि किस तरह की खाद इन सब्जियों में लग रही है और सब्जियां भी इसको खा-पीकर मोटी ताजी पैदा हो रही है। इन्हीं सब्जियों को हम सब निष्ठा के भाव से खरीद रहे हैं, समर्पण के भाव से बना रहे हैं और प्रसाद के भाव से खा रहे हैं। मुझे अपने पत्रकार मित्र जितेंद्र अंथवाल की 15-16 साल पहले की एक न्यूज़ स्टोरी याद आ गई। तब उन्होंने अमर उजाला में एक बड़ी खबर प्रकाशित की थी कि देहरादून शहर में बिकने वाली सारी सब्जियां ताजे पानी से नहीं, बल्कि नालों के पानी से धोकर बाजार में लाई जाती है। यह बात आज भी उतनी सच है जितनी कि 15 साल पहले थी।
असल में, पहले देहरादून शहर के भीतर से रिस्पना और बिंदाल जैसी नदियां बहती थी। साल भर थोड़ा-बहुत पानी मिलता रहता था। इस पानी से खेतों में भी सिंचाई हो जाती थी, लेकिन अब बिंदाल और रिस्पना खुद नाले में बदल गई हैं और गलियों, मोहल्लों से होकर निकलने वाले बड़े नाले शहर का एक अनिवार्य हिस्सा बन गए हैं।
अब इन्हीं इन नालों का पानी खेती की जमीन में इस्तेमाल हो रहा है, इसी पानी का उपयोग सब्जी उगाने में किया जा रहा है और इसी पानी से धुली हुई सब्जियां हमारे आसपास आ रही हैं। अब इस अरण्य रुदन का तो कोई फायदा है नहीं कि सब्जी वाले खेतों में साफ पानी लगाया जाना चाहिए, गंदे पानी का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। ये सब निरर्थक बातें लग रही हैं। अब जैसी उपलब्धता है, वैसा ही पानी लगाया जा रहा है।
मैं, जब भी चमकता हरा पालक, लंबी-लंबी भिंडी, गोल मटोल बैंगन, खुशबू छोड़ता पुदीना, पतली लंबी तोरियां, कच्ची हरी प्याज, मिट्टी की खुशबू समेटे आलू, करी पत्ता, दमकती हरी मिर्च और धनिया देखता हूं तो अचानक ही नाले का फनफनाता, बदबू मारता पानी सामने आ खड़ा होता है। फिलहाल तो मेरे जैसे लोगों की स्तिथि उस कबूतर जैसी है जो बिल्ली को सामने देखकर आंख बंद कर लेता है और खुद को आश्वस्त करता है कि खतरा टल गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *