धार्मिकउत्तराखंड

क्या तीर्थ-पुरोहित एवं पांडा समाज संविधान से ऊंचा है : पृथ्वी सिंह चौहान

Spread the love

देहरादून। राज्य एवं देश से बाहर उत्तराखंड का नाम जब भी आता है तो सामने वाले के मस्तिष्क में “देवभूमि” की पवित्र आभा उकर कर प्रस्तुत हो जाती है। जाहिर सी बात है जहां देवता स्वयं निवास करते हो तो वह जगह सामान्य कैसे हो सकती हैं वहां के लोग एवं संस्कृति भी निश्चित रूप से विशिष्ट ही है, पर आज पूर्व मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को केदारनाथ में आदि देव भगवान शिव शंभू के अलौकिक दर्शन करने से रोकना तीर्थ पुरोहितों एवं पांडा समाज के लिए कहां तक न्यायोचित है??

क्या यह भारतीय संविधान अनुच्छेद 14,21 एवं 25 का खुला उल्लंघन नहीं है?

अनुच्छेद 14 कहता है कि “रूल ऑफ लॉ” सभी के लिए सामान्य रूप से एक होगा फिर आज घटित घटना क्रम तो इसका पालन नहीं करता( सबको दर्शन करने दें और किसी को रोक ले)?

अनुच्छेद 21 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का प्रतिपादन करता है, अर्थात भारत का कोई भी नागरिक कहीं भी आने और जाने के लिए स्वच्छंद है तो फिर आज पांडा समाज का दैहिक स्वतंत्रता पर अतिक्रमण कहां तक उचित है?

अनुच्छेद 25 भारत के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वच्छंदता का अधिकार देता है जिसके अनुसार कोई भी अपने धर्म के अनुसार आचरण कर सकता है। फिर आप किसी को उसके धर्म का पालन करते हुए मंदिरों में जाने से कैसे रोक सकते हैं?

किसी को यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि वे श्रद्धालुओं को दर्शन करने से रोकें। यह अत्यंत खेद का विषय है कि देवालयों को भी राजनीति का अखाड़ा बनाया जा रहा है। ऐसे अमर्यादित एवं अलोकतांत्रिक आचरण को प्रदर्शित करने वाले लोगों का बहिष्कार होना चाहिए।

देवस्थानम बोर्ड की स्थापना हमारे मंदिरों एवं देवायलों के बेहतर रखरखाव एवं उन्नयन की दिशा में हुई थी, शिरडी साईं बाबा ट्रस्ट मां वैष्णो श्राइन बोर्ड एवं पद्ममनाथन मंदिर बोर्ड ट्रस्ट आदि पहले से ही चल रहें हैं।जहां ऐसी व्यवस्था से बेहतर प्रबंधन व स्थानीय लोगों को लाभ मिला है। इसके प्रमाण भी मौजूद हैं।

ये तथाकथित लोग व्यक्तिगत लाभ के चलते मंदिरों में भी राजनीति कर रहे हैं।

निश्चित रूप से हिंदू धर्म के लिए घातक परंपरा का निर्माण कर रहे हैं ये यह लोग,आप इतने स्वार्थी हो गए कि श्रद्धालुओं को दर्शन भी नहीं करने देंगे??

ये तथाकथित लोग धर्मभीरु नहीं हो सकते, ऐसा अस्वीकार्य व्यवहार देवभूमि की सभ्यता के विरुद्ध भी है।

निश्चित रूप से देवभूमि के सभी नागरिकों को गहराई से इस विषय पर मंथन करना होगा, कहीं आज घटित यह घटनाक्रम भविष्य की अलोकतांत्रिक पद्धति को तो जन्म नहीं दे रहा?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *